(1) बेटे-बेटी में करो, समता का व्यवहार। बेटी ही संसार की, होती सिरजनहार।। होती सिरजनहार, स्रजन को सदा सँवारा। जिसने ममता को उर में, जीवन भर धारा।। कह 'मयंक' दामन में, कँटक रही समेटे। बेटी माता बनकर, जनती बेटी-बेटे।। (2) हरे-भरे हों पेड़ सब, छाया दें घनघोर। उपवन में हँसते सुमन, सबको करें विभोर।। सबको करें विभोर, प्रदूषण हर लेते हैं। कंकड़-पत्थर खाकर, मीठे फल देते हैं।। कह 'मयंक' आचरण, विचार साफ-सुथरे हों। उपवन के सारे, पादप नित हरे-भरे हों।। |
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बहुत सार्थक ..बेटा बेटी में समानता ज़रूरी है और जीवन में सदाचार महत्वपूर्ण है ..
जवाब देंहटाएंसादर
सही बात है |
जवाब देंहटाएंबेटे बेटी में भेद क्यूँ ??
संदेश देती सुन्दर रचना
जवाब देंहटाएंसुंदर कुण्डलिया...
जवाब देंहटाएंसादर।
अच्छे संदेश देती रचना !
जवाब देंहटाएं~सादर!
बच्चे नये पौधों की तरह ही होते हैं..सुन्दर कविता..
जवाब देंहटाएंअच्छे सन्देश देती सुन्दर रचना..
जवाब देंहटाएं:-)
बेटे-बेटी में करो, समता का व्यवहार।
जवाब देंहटाएंबेटी ही संसार की, होती सिरजनहार।।
प्रेरक सन्देश देती सुंदर कुण्डलियाँ,,,,
RECENT POST...: जिन्दगी,,,,
आपकी पोस्ट कल 9/8/2012 के चर्चा मंच पर प्रस्तुत की गई है
जवाब देंहटाएंकृपया पधारें
चर्चा - 966 :चर्चाकार-दिलबाग विर्क
अनुपम शिक्षाप्रद प्रस्तुति.
जवाब देंहटाएंश्रीकृष्ण जन्माष्टमी की हार्दिक शुभकामनाएँ.
शास्त्री जी,समय मिलने पर मेरे ब्लॉग पर आकर
'फालोअर्स और ब्लोगिंग'के सम्बन्ध में मेरा मार्ग दर्शन कीजियेगा,
शिक्षाप्रद रचना..
जवाब देंहटाएंवाह !
जवाब देंहटाएंबेटी हो या बेटा हो
उपवन के सारे,
पादप नित हरे-भरे हों।।
औरतों के लिए भी है काइरोप्रेक्टिक चिकित्सा प्रणाली महाकाल के हाथ पे गुल होतें हैं पेड़ ,सुषमा तीनों लोक की कुल होतें हैं पेड़ पेड़ों की मानिंद तीनों लोक की सुषमा होतीं हैं बेटियाँ -
जवाब देंहटाएंऔरतों के लिए भी है काइरोप्रेक्टिक चिकित्सा प्रणाली
पेड़ों की मानिंद तीनों लोक की सुषमा होतीं हैं बेटियाँ -
अनुपम भाव संयोजित किये हैं इस अभिव्यक्ति में आपने ... आभार
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर ,सार्थक ,सन्देश परक कुंडलियाँ जन्माष्टमी की आपको व् सम्पूर्ण परिवार को बधाई
जवाब देंहटाएंबेटे-बेटी में करो, समता का व्यवहार।बेटी ही संसार की होती सिरजनहार।।
जवाब देंहटाएंअच्छे सन्देश देती सुन्दर रचना.. श्रीकृष्ण जन्माष्टमी की हार्दिक शुभकामनाएँ....