जो मन में हो आपके, लिखो उसी पर लेख।
बिना छंद तुकबन्दियाँ, बन जाती आलेख।१।
मन पंछी उन्मुक्त है, इसकी बात न मान।
जीवन एक यथार्थ है, इसको लेना जान।२।
रवि की किरणें दे रहीं, जग को जीवन दान।
पाकर धवल प्रकाश को, मिल जाता गुण-ज्ञान।३।
श्रीकृष्ण ने कर दिया, माँ का ऊँचा भाल।
सेवा करके गाय की, कहलाये गोपाल।४।
जीवन इक त्यौहार है, जानो इसका सार।
प्यार और मनुहार से, बाँटो कुछ उपहार।५।
तम हरने के वास्ते, खुद को रहा जलाय।
दीपक काली रात को, आलोकित कर जाय।६।
अमर शहीदों का कभी, मत करना अपमान।
किया इन्होंने देशहित, अपना तन बलिदान।७।
बिल्ले रखवाली करें, गूँगे राग सुनाय।
अब तो अपने देश में, अन्धे राह बताय।८।
सूखे रेगिस्तान में, जल नहीं हासिल होय।
ख्वाबों के संसार में, जीना दूभर होय।९।
छात्र और शिक्षक जहाँ, करते उलटे काज।
फिर कैसे बन पायेगा, उन्नत देश-समाज।१०।
गुलदस्ते में अमन के, अमन हो गया गोल।
कौन हमारे चमन में, छिड़क रहा विषघोल।११।
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मंगलवार, 20 नवंबर 2012
"विविध दोहावली" (डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक')
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कुहरे ने सूरज ढका , थर-थर काँपे देह। पर्वत पर हिमपात है , मैदानों पर मेह।१। -- कल तक छोटे वस्त्र थे , फैशन की थी होड़। लेक...
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सपना जो पूरा हुआ! सपने तो व्यक्ति जीवनभर देखता है, कभी खुली आँखों से तो कभी बन्द आँखों से। साहित्य का विद्यार्थी होने के नाते...
बिल्ले रखवाली करें, गूँगे राग सुनाय।
जवाब देंहटाएंअब तो अपने देश में, अन्धे राह बताय।७।
बहुत सटीक बहुत प्रासंगिक दोहे , चर्च की एजेंट है यह बिल्ली, मामूली नहीं है ये पूसी ,करती रहती नित हुस हुस हुस हुस ....
सभी दोहे बहुत अच्छे ...विविध रंग लिए हुये
जवाब देंहटाएंजो मन में हो आपके, लिखो उसी पर लेख।
बिना छंद तुकबन्दियाँ, बन जाती आलेख।१।
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बिना छंद तुकबंदियाँ लाएँ भाव अनेक
मन के व्याकुल भाव को बतलाए हर एक ।
आपके इस प्रविष्टी की चर्चा बुधवार (21-11-12) के चर्चा मंच पर भी है | जरूर पधारें |
जवाब देंहटाएंसूचनार्थ |
पोस्ट दिल को छू गयी.......कितने खुबसूरत जज्बात डाल दिए हैं आपने..........बहुत खूब
जवाब देंहटाएंबेह्तरीन अभिव्यक्ति .
बहुत ही अच्छी रचना
जवाब देंहटाएंसभी दोहे विविध सन्देश कहते हुए...
बहुत बेहतरीन...
:-)
बहुत सुन्दर शास्त्री जी...
जवाब देंहटाएंलाजवाब दोहे...
सादर
अनु
विविध रंग लिए हुये सुन्दर दोहे,,,,
जवाब देंहटाएंभक्त पापधी पानि-शत, करें प्रदूषित पानि ।
जवाब देंहटाएंपानिप घटती पानि की, बनता बड़ा सयानि ।
फैलाए आँखे कुटिल, बाबा से कर भेंट ।
हटाएंसदा पिनक में आलसी, लेता सर्प लपेट ।
लेता सर्प लपेट, समझता खुद को औघड़ ।
पी रविकर का रक्त, करे बेमतलब हुल्लड़ ।
कातिल सनकी मूढ़, पहुँचता बिना बुलाये ।
दुराचार नित करे, धर्म का भ्रम फैलाए ।
आपके उत्कृष्ट दोहों के साथ यह भी-
हटाएंकुटिल आलसी और बाबा पर |
आपकी उत्कृष्ट प्रस्तुति का लिंक लिंक-लिक्खाड़ पर है ।।
जवाब देंहटाएंबहुत बढ़िया दोहे ,शास्त्री जी
जवाब देंहटाएंजीवन इक त्यौहार है, जानो इसका सार।
जवाब देंहटाएंप्यार और मनुहार से, बाँटो कुछ उपहार ~जीवन का सार इसी में है...!
सभी दोहे बढ़िया हैं शास्त्री सर !
~सादर !
उत्कृष्ट दोहों की उत्कृष्ट प्रस्तुति
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर रचना
जवाब देंहटाएंआखिर क्यों नहीं पहुँचती हमारी पोस्ट गूगल सर्च तक?
बहुत सुन्दर प्रस्तुति वाह!
जवाब देंहटाएंअच्छी रचना
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर
अति सुन्दर..
जवाब देंहटाएंबेहतरीन दोहे ....
जवाब देंहटाएंबहुत ही अच्छी रचना..
जवाब देंहटाएंबिल्ले रखवाली करें, गूँगे राग सुनाय।
जवाब देंहटाएंअब तो अपने देश में, अन्धे राह बताय।८।
अन्धे की जगह पूडल भी आ सकता है .