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मगर इन्सान है खुदगर्ज कितना आज के युग में,
जवाब देंहटाएंविपत्ति जब सताती है , नमन शैतान करते है,,,,,,,,
बहुत सुंदर उत्कृष्ट रचना,,,
recent post : प्यार न भूले,,,
तान तान शैतान ने, तानपुरा के तार |
जवाब देंहटाएंबाजा बेसुर बजा के, रुला दिया संसार |
sundar varnan !!
जवाब देंहटाएंवाह...वाह..
जवाब देंहटाएंनिरुत्तर हूँ सर... नमन मेरा ..
sundar kavita...
जवाब देंहटाएंबहुत बढ़िया सामयिक प्रस्तुति जो रहते जंगलों में, भीगते बारिश के पानी में,
जवाब देंहटाएंउन्ही के वास्ते झाड़ी मे कुटिया सी छवा दी है।।
vaah
वाह ... बहुत ही बढिया प्रस्तुति।
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर !
जवाब देंहटाएंबहुत बढियां रचना...
जवाब देंहटाएं:-)
मगर इन्सान है खुदगर्ज कितना आज के युग में ,
जवाब देंहटाएंविपत्ति जब सताती है, नमन शैतान करते है।।
आज का मानव-
अतीत से सीखता नहीं,
भविष्य का भय नहीं।
आपका इस प्रविष्टी की चर्चा कल शनिवार (24-11-2012) के चर्चा मंच पर भी होगी!
जवाब देंहटाएंसूचनार्थ!
कबीरा कुछ न बन जाना तजके मान गुमान ,
जवाब देंहटाएंमाती के पुतले काहे पे इतना गुमान .बढ़िया प्रस्तुति .ईश्वर की निर्मिती पर .
न जाने किस राह चला है मानव भी..
जवाब देंहटाएंबढिया रचना
जवाब देंहटाएंसुन्दर रचना
जवाब देंहटाएंबेहद आकर्षित करने वाली प्रस्तुती के लिए बधाई।
जवाब देंहटाएंसुन्दर व् सार्थक अभिव्यक्ति .आभार
जवाब देंहटाएंहम हिंदी चिट्ठाकार हैं
वाह बहुत खूब
जवाब देंहटाएंविपत्ती में शैतान ही नमन करते हैं इन्सान को सुख में भी सुमिरन करते रहना है । सुंदर प्रस्तुति ।
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