नजरों के साथ-साथ नज़ारे बदल गये
उतरेंगे कैसे पार, किनारे बदल
गये
ज़न्नतनुमा वतन का ख्वाब चूर हो
गया
आजाद क्या हुए कि सितारे बदल गये
कतरन मिली तो खिल उठा चेहरा बजाज
का
गद्दी पे बैठ पंच-पियारे बदल गये
कैसे मिलेगी जहर से हमको निज़ाद अब
साँपों को पालने के पिटारे बदल
गये
अब इन्कलाब आयेगा कैसे जुगाड़ में
हुब्बेवतन के सारे इदारे बदल गये
होने लगे विदेश के वो “रूप” पर
फिदा
बदकिस्मती से ढंग हमारे बदल गये
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सही कहा !
जवाब देंहटाएंवाकई बदलने
के साथ साथ
उड़ भी गये हैं रंग
क्या किया जाये
जीने का अब
आता है हमें
पसंद यही ढंग !
समय के साथ रंग और ढंग दोनों बदल गए हैं … बहुत सुन्दर भावपूर्ण रचना ....
जवाब देंहटाएंबहुत सही कहा.
जवाब देंहटाएंरामराम.
बहुत सुंदर भावपूर्ण प्रस्तुति ,,
जवाब देंहटाएंRECENT POST : जिन्दगी.
कैसे मिलेगी जहर से हमको निज़ाद अब
जवाब देंहटाएंसाँपों को पालने के पिटारे बदल गये.सुन्दर अभिव्यक्ति
नमस्कार आपकी इस प्रविष्टी की चर्चा कल बुधवार (14 -08-2013) के चर्चा मंच -1337 पर लिंक की गई है कृपया पधारें. सूचनार्थ
जवाब देंहटाएंकतरन मिली तो खिल उठा चेहरा बजाज का
जवाब देंहटाएंगद्दी पे बैठ पंच-पियारे बदल गये
बहुत बढ़िया ! आज के वक्त की बिलकुल सही तस्वीर खींची है शास्त्री जी ! बहुत ही सशक्त अभिव्यक्ति !
हर शब्द निरीहता और सच से सराबोर...अंतर को छूनेवाली रचना
जवाब देंहटाएंआज का समय केनवस पे उतार दिया हो जैसे ...
जवाब देंहटाएंलाजवाब और प्रभावी ...
bahut hee sundar prastuti.
जवाब देंहटाएंबिलकुल सही और सार्थक...ढंग हमारे बदल गए
जवाब देंहटाएंएक बड़ा सच व्यक्त किया है।
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