चाँद दिखाई दिया दूज का,
फिर से रात हुई उजियाली।
हरी घास का बिछा गलीचा,
तीज आ गई है हरियाली।।
भर सोलह सिंगार धरा ने,
फिर से अपना रूप निखारा।
सजनी ने साजन की खातिर,
सावन में तन-बदन सँवारा।
वन-कानन में आज मयूरी,
नाच रही होकर मतवाली।।
आँगन के कट गये पेड़ सब,
पड़े हुए झूले घर-घर में।
झूल रहीं खुश हो बालाएँ,
गूँज रहे मल्हार नगर में।
मस्त फुहारें लेकर आयी,
नभ पर छाई बदरी काली।।
उपवन में कोमल कलियों की,
भीग रही है चूनर धानी।
खेतों में लहराते बिरुए,
आसमान का पीते पानी।
पुरवय्या के झोंखे आते,
बल खाती पेड़ों की डाली।।
घेवर-फेनी और जलेबी,
अच्छी लगती चौमासे में।
लेकिन अब त्यौहार हमारे,
हैं मँहगाई के फाँसे में।
खास आदमी मजे उड़ाते,
जेब आम की बिल्कुल खाली।।
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शुक्रवार, 9 अगस्त 2013
"तीज आ गई है हरियाली" (डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक')
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तीज की हार्दिक शुभकामनाएं...तीज के बहाने प्रकृति का अच्छा चित्र खींचा है आपने।।।
जवाब देंहटाएंतीज की अनुपम प्रस्तुति,,,,
जवाब देंहटाएंसही कहा सारा का सारा बडी़ बडी़ जेबों में जब जा रहा !
जवाब देंहटाएंतीज की हार्दिक शुभकामनाएं..
जवाब देंहटाएंहरियाली तीज की शुभकामनायें..
जवाब देंहटाएंएक ओर प्रकृति है सौनदर्य लुटाती.....त्योहारों को मनभावन करती....दूसरी ओर कीमतें.....किंतु भावना सब पर हावी.....तीज की शुभकामनाएँ !
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