कहीं मन्दिर का है मसला, कहीं
मस्जिद का है जलवा
मज़हब के नाम पर होता, वतन में हर जगह बलवा
सभी अपनी चलाते हैं, सियासत हो गई
शातिर
रियाया के लहू से अब, चमन को
सींचता कलुवा
शज़र जो दे रहा छाया, उसी की काटते शाखा
मिटाता आदमीयत जो, उसी का चाटते
तलुवा
पुरानी सभ्यता पर अब, लगा है रोग शैतानी
हुआ परिधान अब नंगा, बदन को नोचता
ठलुआ
दिया जो “रूप” कुदरत ने, उसी के साथ फितरत की
अमानत में खयानत कर, सितमग़र खा
रहे हलुआ
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Ek khedjanak prasang, aaj ke yug kaa !
जवाब देंहटाएंआप ने लिखा... हमने पढ़ा... और भी पढ़ें... इस लिये आप की ये खूबसूरत रचना शुकरवार यानी 09-08-2013 की http://www.nayi-purani-halchal.blogspot.com पर लिंक की जा रही है... आप भी इस हलचल में शामिल होकर इस हलचल में शामिल रचनाओं पर भी अपनी टिप्पणी दें...
जवाब देंहटाएंऔर आप के अनुमोल सुझावों का स्वागत है...
कुलदीप ठाकुर [मन का मंथन]
गजल के दवारा सटीक अभिव्यक्ति,,,
जवाब देंहटाएंRECENT POST : तस्वीर नही बदली
सामयिक स्थितियों का सटीक वर्णन
जवाब देंहटाएंबहुत ही प्रभावी.
जवाब देंहटाएंरामराम.
बहुत सटीक अभिव्यक्ति....
जवाब देंहटाएंआपकी इस प्रस्तुति का लिंक 08-08-2013 के चर्चा मंच पर है
जवाब देंहटाएंकृपया पधारें
धन्यवाद
sab halva hee khaa sakte hain bass
जवाब देंहटाएं!
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर अभिव्यक्ति !
latest post नेताजी सुनिए !!!
latest post: भ्रष्टाचार और अपराध पोषित भारत!!
वर्तमान का सटीक चित्रण !!
जवाब देंहटाएंइस टिप्पणी को लेखक ने हटा दिया है.
जवाब देंहटाएंआज सवा दो मास के बाद अपने प्रिय चर्चा मंच पर आ कर कृतार्थ हो सका हूँ |थोड़ी बहुत उंगलियाँ चलने लगी हैं |
जवाब देंहटाएंप्रिय मित्र !आज आप की एक अच्छी सी रचना लम्बी अवधि के बाद पद कर कृतार्थ हुआ हूँ |
सम्प्रदायवाद पर इसी तरह चोट होंती रहे तो कुछ अमन की आशा है |अब जुड़े रहने की आशा है|एक बड़ी भूल होने से बचा लिया है आप ने |
बहुत सुंदर !
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