"गिलहरी"
बैठ मजे से मेरी छत पर,दाना-दुनका खाती हो!
उछल-कूद करती रहती हो,
सबके मन को भाती हो!!
मैं मूँगफली दिखलाता हूँ,
कट्टो-कट्टो कहकर तुमको,
जब आवाज लगाता हूँ,
कुट-कुट करती हुई तभी तुम,
जल्दी से आ जाती हो!
उछल-कूद करती रहती हो,
सबके मन को भाती हो!!
नाम गिलहरी, बहुत छरहरी, आँखों में चंचलता है, अंग मर्मरी, रंग सुनहरी, मन में भरी चपलता है, हाथों में सामग्री लेकर, बड़े चाव से खाती हो!
उछल-कूद करती रहती हो,
सबके मन को भाती हो!!
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मंगलवार, 23 दिसंबर 2014
"सबके मन को भाती हो" (डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक')
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वाह बहुत सुंदर
जवाब देंहटाएंबहुत ही सुन्दर गीत .. गिलहरी की चंचलता को बाखूबी कैद किया है ...
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर.
जवाब देंहटाएंआपकी उत्कृष्ट प्रस्तुति बुधवार के - चर्चा मंच पर ।।
जवाब देंहटाएंवाह बहुत सुंदर गीत " गिलहरी" पर पढ़ा अब तक का सबसे बेहतरीन बाल गीत
जवाब देंहटाएंउत्कृष्ट प्रस्तुति
सादर ---
दुनियां की सभी माओं के आंसू ----
सुंदर बाल गीत "
जवाब देंहटाएंसुंदर बाल गीत .....
जवाब देंहटाएंक्या बात है , सुंदर !!
जवाब देंहटाएंबहुत खुबसूरत रचना !
जवाब देंहटाएंभूलना चाहता हूँ !
प्यारी गिलहरी की बहुत प्यारी कविता .
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