आयेगा इस वर्ष
भी, नया-नवेला साल।
आशाएँ फिर से
जगीं, सुधरेंगे अब हाल।।
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नव-वर्ष खड़ा
द्वारे-द्वारे!
नव-वर्ष खड़ा
द्वारे-द्वारे!
गधे चबाते हैं
काजू,
महँगाई खाते
बेचारे!!
काँपे माता
काँपे बिटिया, भरपेट न जिनको भोजन है,
क्या सरोकार
उनको इससे, क्या नूतन और पुरातन है,
सर्दी में फटे
वसन फटे सारे!
नव-वर्ष खड़ा
द्वारे-द्वारे!!
जो इठलाते हैं
दौलत पर, वो खूब मनाते नया-साल,
जो करते श्रम
का शीलभंग,वो खूब कमाते द्रव्य-माल,
वाणी में केवल
हैं नारे!
नव-वर्ष खड़ा
द्वारे-द्वारे!!
नव-वर्ष हमेशा
आता है, सुख के निर्झर अब तक न बहे,
सम्पदा न लेती
अंगड़ाई, कितने दारुण दुख-दर्द सहे,
मक्कारों के
वारे-न्यारे!
नव-वर्ष खड़ा
द्वारे-द्वारे!!
रोटी-रोजी के
संकट में, नही गीत-प्रीत के भाते हैं,
कहने को अपने
सारे हैं, पर झूठे रिश्ते-नाते हैं,
सब स्वप्न हो
गये अंगारे!
नव-वर्ष खड़ा
द्वारे-द्वारे!!
टूटा तन-मन भी
टूटा है, अभिलाषाएँ बस जिन्दा हैं,
आयेगीं जीवन
में बहार, यह सोच रहा कारिन्दा हैं,
कब चमकेंगें नभ
में तारे!
नव-वर्ष खड़ा
द्वारे-द्वारे!!
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हकीकत बयान करती रचना सुंदर ।
जवाब देंहटाएंसब स्वप्न हो गये अंगारे
जवाब देंहटाएंकब चमकेगेँ नभ मे तारे
बहुत सुन्दर रचना
दुखद स्थिति, साल बदलते हैं कैलेंडर भी पर गरीबों की, आम जनता की स्थिति सदैव एक सी रहती है।
जवाब देंहटाएंवास्तविकता को उजागर करती सुन्दर रचना !
जवाब देंहटाएंभूलना चाहता हूँ !