हम गीत और ग़ज़ल के, उद्गार ढो रहे हैं।।
बन कर सजग सिपाही, हम दे रहे हैं पहरे,
हम मेट देंगे अपने, पर्वत के दाग गहरे,
उनको जगा रहे हैं, जो हार सो रहे हैं।
हम गीत और ग़ज़ल के उद्गार ढो रहे हैं।।
तूफान-आँधियों में, हमने दिये जलाये,
फानूस बन गये हम, जब दीप झिलमिलाये,
हम प्रीत के सुजल से, संसार धो रहे हैं।
हम गीत और ग़ज़ल के, उद्गार ढो रहे हैं।।
मनके सभी पिरोये, टूटे सुजन मिलाये.
वीरान वाटिका में, रूठे सुमन खिलाये,
माला के तार में भी, हम प्यार पो रहे हैं।
हम गीत और गजल के, उद्गार ढो रहे हैं।।
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तूफान-आँधियों में, हमने दिये जलाये,
जवाब देंहटाएंफानूस बन गये हम, जब दीप झिलमिलाये,
हम प्रीत के सुजल से, संसार धो रहे हैं।
हम गीत और ग़ज़ल के, उद्गार ढो रहे हैं।।
बहुत सुंदर रचना.
शास्त्री जी बहुत अच्छा लिखा है और आप सच में ही ...उनको जगा रहे हैं, जो हार सो रहे हैं।
जवाब देंहटाएंशास्त्री जी बहुत अच्छा लिखा है और आप सच में ही ...उनको जगा रहे हैं, जो हार सो रहे हैं।
जवाब देंहटाएंमाला के तार में भी, हम प्यार पो रहे हैं।
जवाब देंहटाएंहम गीत और गजल के, उद्गार ढो रहे हैं।।
बढ़िया...