कोमलता अपनाने वाले,
गीत प्रणय के गाते हैं।
काँटों में मुस्काने वाले,
सबसे ज्यादा भाते हैं।।
सीधे-सादे, भोले-भाले,
रखते हैं अन्दाज़ निराले,
जो चंचल-नटखट होते हैं,
मन के होते हैं मतवाले.
हँसते हुए प्रसून देखकर,
दौड़े-दौड़े आते हैं।
काँटों में मुस्काने वाले,
सबसे ज्यादा भाते हैं।।
निर्झर शान्त नही हैं रहते,
प्रबल वेग से ये हैं बहते,
पाषाणों के अवरोधों को,
कदम-कदम पर ही हैं सहते,
साथ लिए जल की धारा को,
आगे को बढ़ जाते हैं।
काँटों में मुस्काने वाले,
सबसे ज्यादा भाते हैं।।
नहीं राज़ को कभी छिपाते,
कोरी बातें नहीं बनाते,
जो सच्चे प्रेमी होते हैं
प्रेमदिवस वो रोज मनाते,
बगिया को अपनी खुशबू से,
प्रतिदिन ही महकाते हैं।
काँटों में मुस्काने वाले,
सबसे ज्यादा भाते हैं।।
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शनिवार, 20 फ़रवरी 2016
गीत "सबसे ज्यादा भाते हैं" (डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक')
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