दोहा, मात्रिक अर्द्धसम छन्द है। दोहे के चार चरण
होते हैं। इसके विषम चरणों (प्रथम तथा तृतीय) में १३-१३ मात्राएँ और सम चरणों
(द्वितीय तथा चतुर्थ) में ११-११ मात्राएँ होती हैं। विषम चरणों के आदि में जगण
(।ऽ।) नहीं होना चाहिए। सम चरणों के अन्त में एक गुरु और एक लघु मात्रा का होना
आवश्यक होता है अर्थात अन्त में लघु होता है।
उदाहरण-
मन में जब तक आपके, होगा
शब्द-अभाव।
दोहे में तब तक नहीं, होंगे
पुलकित भाव।1।
--
गति-यति, सुर-लय-ताल सब, हैं दोहे के
अंग।
दोहा रचने के लिए, इनको रखना
संग।2।
--
लघु में लगता है समय, एक-गुना
श्रीमान।
अगर दो-गुना लग रहा, गुरू उसे लो
जान।3।
--
गण का दोहा छन्द में, होता बहुत
महत्व।
गण ही तो इस छन्द के, हैं आवश्यक
तत्व।4।
--
तेरह ग्यारह से बना, दोहा छन्द
प्रसिद्ध।
विषम चरण के अन्त में, होता जगण
निषिद्ध।5।
--
कठिन समझना मत कभी, दोहे का
विन्यास।
इसको रचने के लिए, करो सतत्
अभ्यास।6।
|
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शनिवार, 6 मई 2017
दोहे "दोहे का विन्यास" (डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री "मयंक")
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ज्ञानवर्धक।
जवाब देंहटाएंदोहे के बारे में आपने कविता में बता दिया. बहुत सुन्दर.
जवाब देंहटाएंदोहे के विषय में सार्थक जानकारी देने के लिए आभार गुरु देव. कठिन काव्य सहजता से समझ में आ गया.
जवाब देंहटाएंकठिन को सरल बना दिया गुरु देव ने अपने
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