चमकती बिजुरिया चपला,
गगन में मेघ हैं छाये।
मिटाने प्यास धरती की,
जलद जल धाम ले आये।
धरा की घास थी सूखी,
त्वचा थी राख सी रूखी,
हुई घनघोर जब बारिस,
नदी-नाले उफन आये।
मिटाने प्यास धरती की,
जलद जल धाम ले आये।।
दिवस में छिप गया सूरज,
दबा माटी का उड़ता रज,
किसानों के लिए बादल,
सुधा का जाम ले आये।
मिटाने प्यास धरती की,
जलद जल धाम ले आये।।
लगी है झड़ी सावन की,
जगी है आग विरहिन की,
मिलन की आस में उनके,
हृदय के कुसुम मुरझाये।
मिटाने प्यास धरती की,
जलद जल धाम ले आये।।
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सोमवार, 3 जुलाई 2017
"जलद जल धाम ले आये" (डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री ‘मयंक’)
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बेहतरीन/
जवाब देंहटाएंरामराम
#हिन्दी_ब्लॉगिंग
बहुत सुन्दर भाव संयोजन
जवाब देंहटाएंवाह, अति सुंदर
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर.
जवाब देंहटाएंचमकती बिजुरिया चपला,
जवाब देंहटाएंगगन में मेघ हैं छाये।
मिटाने प्यास धरती की,
जलद जल धाम ले आये।
रूप का जलवा क्या खूब बरसा है.
सुन्दर ,सुखद, तृप्त करता हुआ.
सादर आभार.