राजनीति गन्दी नहीं, गन्दे हैं हम लोग।
जन सेवा के नाम पर, खाते मोहनभोग।।
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आये जग में किसलिए, समझ लीजिए सार।
जीवनरूपी नाव का, सदाचार आधार।।
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जैसा बोया खेत में, वही रहा है काट।
सामाजिक परिवेश के, मत कर बन्द कपाट।।
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जल का करके आचमन, अन्तस करो पवित्र।
लेकिन पहले कीजिए, अपना साफ चरित्र।।
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अपने स्वारथ के लिए, करो न ओछे काम।
भोर हमेशा साँझ का, लाती है पैगाम।।
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लालू और नवाज के, एक सरीखे ढंग।
दोनों के आचरण पर, देखो लगा कलंक।।
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झूठ कभी मत समझना, अपने पावन मन्त्र।
न्यायालय के सामने, बौने सारे तन्त्र।।
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बदअमनी के अब सभी, बन्द करो उपदेश।
जीवन में धारण करो, ऋषियों के सन्देश।।
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रविवार, 30 जुलाई 2017
दोहे "राजनीति गन्दी नहीं, गन्दे हैं हम लोग"
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सुन्दर दोहे।
जवाब देंहटाएंआदरणीय आपके विचार अनमोल हैं धन्यवाद ,आभार। "एकलव्य"
जवाब देंहटाएंकलुषित मनोवृत्ति ने राजनीति को दूषित कर दिया है -एक तमाशा बन कर रह गई है.
जवाब देंहटाएं@राबिल्कुल सही !जनीति गन्दी नहीं, गन्दे हैं हम लोग.......
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