बड़े दिनों के बाद
में, आयी है बरसात।
उमड़-घुमड़कर श्यामघन,
बरसे पूरी रात।।
--
खेतों में पानी
भरा, नाले हैं लबरेज।
रोपाई का धान की, काम
हो गया तेज।।
--
बारिश से भीगा
बदन, बहुत दिनों के बाद।
अपनी नौका नदी
में, लाये आज निषाद।।
--
झरने झर-झर कर
रहे, उफन रहे हैं ताल।
सरिताओं का हो
रहा, रूप आज विकराल।।
--
बया नीड़ से
झाँकती, गर्दभ करते गान।
भारी बारिश से
कहीं, दरक रही चट्टान।।
--
रंग-बिरंगी
छतरिया, ओढ़ रहे हैं लोग।
सिर ढकने के है
लिए, छातों का उपयोग।।
--
बालक कागज की बना,
चला रहे हैं नाव।
जाती नौका उधर ही,
होता जिधर बहाव।।
--
कई साल के बाद
में, बरस रहा आषाढ़।
जो निचले भू-भाग
हैं, उनमें आयी बाढ़।।
--
फिर से सूखे चमन
में, आने लगी बहार।
सूखी पड़ी जमीन
की, भरने लगीं दरार।।
|
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गुरुवार, 6 जुलाई 2017
दोहे "आयी है बरसात" (ड़ॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक')
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नभ से अमृत बरस रहा
जवाब देंहटाएंbadhiya kavita
जवाब देंहटाएंबहुत ही लाजवाब.
जवाब देंहटाएंरामराम
#हिन्दी_ब्लॉगिंग
वाह वाह हमेशा की तरह लाजवाब
जवाब देंहटाएंबालक कागज की बना, चला रहे हैं नाव।
जवाब देंहटाएंजाती नौका उधर ही, होता जिधर बहाव।।
बढ़िया अभिव्यक्ति है , मंगलकामनाएं आपको !
सुन्दर दोहे।
जवाब देंहटाएंहमेशा की भांति शानदार.
जवाब देंहटाएंबहुत ही मनोरम ! प्रकृति का वर्णन ,लयबद्ध रचना ,सुन्दर
जवाब देंहटाएंआभार "एकलव्य"
वाआआआह बहुत खूब....
जवाब देंहटाएं