-- नूतन आविष्कार ने, कैसा
किया कमाल। गाँव-गाँव में सुलभ है, अब
तो अन्तरजाल।। -- कब किसको क्या चाहिए, सबका
रखता ख्याल। संचित अन्तरजाल पर, सभी
तरह का माल।। -- मिलते अन्तरजाल पर, सभी
तरह के चित्र। रुचियों के अनुसार ही, यहाँ
बनाओ मित्र।। -- रोज फेसबुक-ब्लॉग पर, लिक्खो
नवल विचार। बात-चीत का आजकल, नेट
सबल आधार।। -- ब्लॉग-फेसबुक में भरा, भावों
का मकरन्द। पढ़ने-लिखने में जहाँ, मिल
जाता आनन्द।। -- मेल-व्हाट्सप ने किया, काम
बहुत आसान। बिना चिट्ठियों के हुए, पत्रालय
सुनसान।। -- मोती माणिक युक्त है, गहरा
सागर ताल। नवयुग का भगवान है, जग में अन्तरजाल।। -- |
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शुक्रवार, 1 मार्च 2024
दोहे "नेट सबल आधार" (डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक')
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