-- अब फिर से सजने लगा,
वनखण्डी का द्वार। नई ऊर्जा का हुआ भक्तों में
संचार।1। -- काँवड़ लेकर आ रहे, महिला-पुरुष अनेक। आतुर गंगा- नीर से, करने को अभिषेक।2। -- जंगल में खुलकर खिला, सेमल और पलाश। हर-हर, बम-बम नाद से, गूँज रहा आकाश।3। -- गेँहू बौराया हुआ, सरसों करती नृत्य। खुश होकर सब कर रहे, अपने-अपने कृत्य।4। -- शिवजी की त्रयोदशी, देती है सन्देश। अपने प्यारे देश का, साफ करो परिवेश।5। -- देवों ने अमृत पिया, मिला देव का मान। महादेव शिव बन गये, करके विष का पान।6। -- नर-वानर-सुर मानते, जिनको सदा महेश। विघ्नविनाशक के पिता, काटो सकल कलेश।7। -- सच्चे मन से जो करे, शिव-शंकर का ध्यान। उसको ही मिलता सदा, भोले का वरदान।8। -- |
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मंगलवार, 5 मार्च 2024
दोहे "वनखण्डी का द्वार" (डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक')
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