-- गूँज रही है मन-उपवन में कोयलिया की बोली। वासन्ती सपनों को लेकर फिर से आई होली।। -- रंग-बिरंगे कुसुम खिले हैं, बगिया और
चमन में, अँगारे जैसे दहके हैं, टेसू फिर
से वन में, मन्द-सुगन्ध पवन ने, तन में
मादकता सी घोली। वासन्ती सपनों को लेकर फिर से आई होली।। -- रंग, अबीर-गुलाल, शान से
हँसते-मुस्काते हैं, लोग-लुगाई प्रणय-गीत खुश हो करके गाते हैं, अपनी धुन में बौराए से थिरक रहे हमजोली। वासन्ती सपनों को लेकर फिर से आई होली।। -- मन में दबी हुई गाँठों के गठबन्धन को खोलें, प्रेम-प्रीत के रंगों से सब गिले-शिकायत धो
लें, अपनेपन के अरमानों से भर जाएगी झोली। वासन्ती सपनों को लेकर फिर से आई होली।। -- सबके घर-आँगन में फिर से बौझारें बरसेंगी, बच्चों के हाथों में फिर से पिचकारी
सरसेंगी, देवर और भाभी में जमकर होगी हँसी-ठिठोली। वासन्ती सपनों को लेकर फिर से आई होली।। -- क्रूर होलिका होली की लपटों में जल जाएगी, प्रिय प्रह्लाद की अशुभ घड़ी भी फिर से टल
जाएगी, झूम-झूमकर फिर से गलियों में निकलेंगी
टोली। वासन्ती सपनों को लेकर फिर से आई होली।। -- |
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बुधवार, 13 मार्च 2024
होलीगीत "मौसम ने मादकता घोली" (डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक')
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