दिल की आवाज, शायरी के अल्फाज रचयिता-रोमेश कुमार ग्रोवर उपनाम- 'मधुकर देहलवी' -- साहित्य की दुनिया में 'मधुकर देहलवी' का नाम मैंने सुना तो था लेकिन उनसे परिचय कुछ भी नहीं था। एक दिन
अचानक आपसे वार्तालाप फेसबुक पर हुआ। आपने कहा कि अपना व्हाट्सप नम्बर दे दीजिए,
मैं आपको कुछ भेजना चाहता हूँ। मैंने नम्बर दिया तो मुझे 150 पृष्ठों की आपकी
नवीनतम मुक्तक कृति "दिल की आवाज, शायरी के अल्फाज"
की पी.डी.एफ. फाइल मिली यद्यपि इससे पूर्व में भी कई मित्रों की
कृतियाँ मेरे पास समीक्षा-भूमिका के लिए कतार में थीं परन्तु इस काव्य
संग्रह को सांगोंपांग बाँचकर प्राथमिकता के साथ मेरी अंगुलियाँ कम्प्यूटर के की-बोर्ड पर चलने लगीं और कुछ शब्द अंकित हो गये। आदरणीय मधुकर देहलवी, दिल्ली के लोकप्रिय कवि/शायर हैं। आपका वास्तविक नाम श्री
रोमेश कुमार ग्रोवर है। साहित्य सृजन हेतु आप अपने उपनाम (तखल्लुस ) मधुकर देहलवी
प्रयोग करते हैं। आपका जन्म सन 1945 में जिला लाहौर में हुआ था। तब वह स्थान
भारत का भाग था। विभाजन के बाद आपके माता-पिता परिवार सहित पानीपत में बस गए जो अब हरियाणा राज्य में है।
इनके माता-पिता शिक्षण कार्य करते थे और पिता जी शायरी भी करते थे। उन्हीं से श्री
रोमेश ग्रोवर को कविता शायरी की प्रेरणा मिली। शिक्षा ग्रहण कर आप शिक्षक बन गए।
आपने 1964-65 में पानीपत के विद्यालयों में शिक्षण कार्य किया तथा 1966 से 2005 तक दिल्ली नगर निगम एवं दिल्ली शिक्षा निदेशालय के विद्यालयों में कार्यरत रहे।
सेवा निवृत्ति के पश्चात् समाज सेवा में जुट गए और 2011 से कविता शायरी करने लगे।
2015-2020 तक फेसबुक पर मधुकर देहलवी
और रोमेश ग्रोवर के नामों से कविता शायरी
के ग्रुप चलाए। कोरोना काल में यह कार्य रुक गया। आपकी पत्नी कोरोना से ग्रस्त होकर
जनवरी 2022 में स्वर्ग सिधार गई। ग़म और अकेलेपन ने आपको पुनः शायरी की ओर प्रेरित किया।
आप इन्स्टाग्राम और फेसबुक पर आजकल सक्रिय हैं। सितंबर 2023 में इनकी एक पुस्तक "शायरी नई अदा" प्रकाशित हुई थी। अब यह नई पुस्तक "शायरी के नये रंग" का
प्रकाशन भी हो चुका है। जिसमें में रोमांस, देश-प्रेम व धार्मिक-सामाजिक सरोकार भरे पड़े हैं। "दिल की आवाज, शायरी के अल्फाज" में केवल और केवल मुहब्बत की शायरी है। जो मुक्तक छन्द में लिखी गयी
है। आप इससे पूर्व अपनी एक पुस्तक "शायरी नई अदा"
पेश कर चुका हैं। उससे उत्साह पाकर आपने अपनी नई पुस्तक " दिल की आवाज़ शायरी
के अल्फाज़ प्रस्तुत की है। जिसमें आप इस
शायरी में गंगा यमुनी तहज़ीब के दर्शन करेंगे। प्रेम और भाईचारे का संदेश पाएंगे।
हिन्दी और उर्दू भाषाओं का ताना-बाना देखेंगे। जिसमें मुक्तक और रुबाई छ्न्द की छटा
है। वतन परस्ती, रोमांस, धार्मिकता एवं
सामाजिक भावनों ने पुस्तक में रंग जमाया
है। आपकी साहित्य निष्ठा देखकर मुझे प्रकृति के सुकुमार
चितेरे श्री सुमित्रानन्दन पन्त जी की यह पंक्तियाँ याद आ जाती हैं- "वियोगी होगा पहला कवि, हृदय से उपजा
होगा गान। निकल कर नयनों
से चुपचाप, बही होगी
कविता अनजान।।" कवि ने अपने काव्य संग्रह में यह सिद्ध कर दिया है कि वह
न केवल एक कवि हैं बल्कि मुक्तकों के कुशल चितेरे भी हैं। अपने काव्य संग्रह का प्रारम्भ करते
हुए शब्दों को कुछ इस प्रकार शब्दों को उकेरा है- " खुदा करे न आए दो दिलों में
जुदाई की रैन उड़ जाती है रातों की नींद संग दिन का चैन दुनियां की कोई भी चीज लुभाती नहीं उन्हें खुशी के नगमे भी लगते हैं रुलाने वाले बैन" कवि ने अपने मुबब्बत को सर्वोपरि मानकर अपने मुक्तक में
कुछ इस प्रकार से व्यक्त किया है- " बहुत ऊंचा है दर्जा मुहब्बत का
किताबों में होता यह जज्बा जवान दिलों के ख्वाबों मे किसी भी उम्र में हो जाती है मुहब्बत यूं तो मुहब्बत में नाकाम होकर न डूबो शराबों में" कवि ने देश प्रेम पर भी अपनी कलम कुशलता के साथ चलाई है।
देखिए निम्न मुक्तक- " लगता है सबको प्यारा घर परिवार अपना वतन विरले ही कर देते हैं कुर्बान इन पर तन मन धन हर कुर्बानी देने को सदा तैयार रहते हैं देश प्रेमी बहा देते हैं देश रक्षा हित रक्त का अन्तिम कण" जन-गण-मन के नायक श्री राम पर आपका मुक्तक बहुत प्रासंगिक है- " रामायण में सबसे सुन्दर श्री
राम का किरदार करते थे प्रजा से बहुत ही प्रेम पूर्वक व्यवहार माता पिता भाईयों का करते सत्कार हृदय से सेवक मिला
हनुमान किया रावण का संहार" एक अन्य मुक्तक में आपने योगिराज श्री कृष्ण महाराज के बारे में लिखा है- " अपने रंग में रंग दो मुझको हे
मेरे घनश्याम सब कुछ छोड़कर प्रभु आया आपके नाम सौंप दिया जीवन अपना प्रभु आपके हाथ रख लीजिए अपनी शरण में मेरे राधेश्याम" आपने माता जगद्जननि के विषय में भी कलम चलाते हुए लिखा है- "ऊँचे पहाड़ों
पर है देवी माँ के बहुत सुन्दर भवन दर्शन करने को करते हैं यात्रा श्रृद्धालु भक्त जन मौसम के जोख़िम रोक नहीं सकते हैं लोगों को करती कृपा है माता खिल उठते सबके तन-मन" कवि मधुकर देहलवी ने प्रभु के प्रति अपनी
अभिव्यक्ति प्रकट करते हुए लिखा है- "जो दिया जैसा दिया बहुत ही शुक्रगुजार हूँ तुम्हारी रज़ा में हूँ राज़ी बिल्कुल ताबेदार हूँ जैसा चाहोगे वैसा नाचूंगा प्रभुजी मदारी मेरे मगर बंदगी न कर पाया तुम्हारा गुनहगार हूँ" पंजाबी मूल में पले-बढ़े कवि मधुकर देहलवी ने अपने काव्य संग्रह में भारत के प्रति
अपने अनुराग को कुछ इस प्रकार व्यक्त किया है- " देश हमारा भारत वर्ष है सब देशों से पुरातन धर्म कला संस्कृति दर्शन हमारे पूर्ण सनातन हमारे ही वेद हैं आधार आधुनिक विज्ञान के विश्वगुरु शून्य दाता पर मानें न कुछ आदतन" कवि ने कोरोना काल में पत्नी के बिछोह पर बहुत मार्मिक
मुक्तक रचा है- " मेरे जेहन से नहीं जाता कभी
तेरा ख्याल तेरी जुदाई ने कर दी ज़िन्दगी खस्ताहाल सुकून का नहीं रहा कोई भी लम्हा बाकी इस अकेलेपन ने मेरा जीना किया मुहाल" देखने में यह आया है कि कवि ने जहाँ मानवीय संवेदनाओं पर
तो अपनी संवेदना बिखेरी वहीं प्राकृतिक उपादानों को भी अपने मुक्तकों का विषय बनाया है। “दिल की आवाज, शायरी के अल्फाज” (मुक्तक संग्रह) को पढ़कर मैंने अनुभव किया है कि कवि ने भाषिक
सौन्दर्य के अतिरिक्त काव्य की सभी विशेषताओं का संग-साथ लेकर जो निर्वहन किया है वह अत्यन्त
सराहनीय है। मुझे पूरा विश्वास है कि पाठक “दिल की आवाज, शायरी के अल्फाज” (मुक्तक संग्रह)
को पढ़कर अवश्य लाभान्वित होंगे और यह कृति समीक्षकों की दृष्टि से भी उपादेय
सिद्ध होगी। हार्दिक शुभकामनाओं
के साथ- दिनांकः 10-3-2024 (डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री ‘मयंक’) कवि एवं
साहित्यकार टनकपुर-रोड, खटीमा जिला-ऊधमसिंहनगर (उत्तराखण्ड) Mobile No. 7906360576 Website-Uchcharan.blogspot.com/ E-Mail-roopchandrashastri@gmail.com |
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मंगलवार, 12 मार्च 2024
भूमिका "दिल की आवाज, शायरी के अल्फाज" (डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री ‘मयंक’)
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