रूई जैसा कोमल-कोमल, लगता कितना प्यारा है। बड़े-बड़े कानों वाला, सुन्दर खरगोश हमारा है।। बहुत प्यार से मैं इसको, गोदी में बैठाता हूँ। बागीचे की हरी घास, मैं इसको रोज खिलाता हूँ।। मस्ती में भरकर यह लम्बी-लम्बी दौड़ लगाता है। उछल-कूद करता-करता, जब थोड़ा सा थक जाता है।। तब यह उपवन की झाड़ी में, छिप कर कुछ सुस्ताता है। ताज़ादम हो करके ही, मेरे आँगन में आता है।। नित्य-नियम से सुबह-सवेरे, यह घूमने जाता है। जल्दी उठने की यह प्राणी, सीख हमें दे जाता है।। |
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शुक्रवार, 25 फ़रवरी 2011
"सुन्दर सा खरगोश हमारा" (डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री "मयंक")
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बहुत प्यार से मैं इसको,
जवाब देंहटाएंगोदी में बैठाता हूँ।
बागीचे की हरी घास,
मैं इसको रोज खिलाता हूँ।।
बहुत खुबसुरत जीव की सुंदर कविता....
बाल विषयों पर सुन्दर कविता।
जवाब देंहटाएंसुन्दर कविता।
जवाब देंहटाएंबहुत प्यारी कविता है |और खरगोश भी
जवाब देंहटाएंसुन्दर बाल गीत.
जवाब देंहटाएंख़रगोश सा कोमल शिशु गीत!!
जवाब देंहटाएंवाह जी बहुत ही सुंदर रचना, धन्यवाद
जवाब देंहटाएं'नित्यं-नियम से सुबह-सवेरे,यह घूमने जाता है
जवाब देंहटाएंजल्दी उठने की यह प्राणी,सीख हमें दे जाता है.'
सुंदर सीख दी है आपने कोमल-कोमल प्यारे खरगोश के माध्यम से.
एक सुंदर बाल-सुलभ कविता.
जवाब देंहटाएंमन को लुभाने वाला बाल गीत।
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर बाल रचना। बधाई।
जवाब देंहटाएंसुन्दर बाल कविता के लिए बधाई।
जवाब देंहटाएंबच्चों के लिए प्रेरणादायक रचना है.
जवाब देंहटाएंसुन्दर बाल गीत.
जवाब देंहटाएंलाजवाब....