स्वस्थ रहें सब जगत में, दाता दो वरदान। गर्मी, वर्षा-शीत में, दुखी न हो इन्सान।१। हरे-भरे हों पेड़ सब, छाया दें घनघोर। उपवन में हँसते सुमन, सबको करें विभोर।२। ज्ञान बाँटने से कोई, होता नहीं विपन्न। विद्या धन का दानकर, बन जाओ सम्पन्न।३। रत्तीभर चक्खा नहीं, लिया नहीं आनन्द। आखिर डाका पड़ गया, लुटा सभी मकरन्द।४। भूसी-चावल सँग रहें, तभी बढ़े परिवार। हुए धान से जब अलग, बाँट खाय संसार।५। |
"उच्चारण" 1996 से समाचारपत्र पंजीयक, भारत सरकार नई-दिल्ली द्वारा पंजीकृत है। यहाँ प्रकाशित किसी भी सामग्री को ब्लॉग स्वामी की अनुमति के बिना किसी भी रूप में प्रयोग करना© कॉपीराइट एक्ट का उलंघन माना जायेगा। मित्रों! आपको जानकर हर्ष होगा कि आप सभी काव्यमनीषियों के लिए छन्दविधा को सीखने और सिखाने के लिए हमने सृजन मंच ऑनलाइन का एक छोटा सा प्रयास किया है। कृपया इस मंच में योगदान करने के लिएRoopchandrashastri@gmail.com पर मेल भेज कर कृतार्थ करें। रूप में आमन्त्रित कर दिया जायेगा। सादर...! और हाँ..एक खुशखबरी और है...आप सबके लिए “आपका ब्लॉग” तैयार है। यहाँ आप अपनी किसी भी विधा की कृति (जैसे- अकविता, संस्मरण, मुक्तक, छन्दबद्धरचना, गीत, ग़ज़ल, शालीनचित्र, यात्रासंस्मरण आदि प्रकाशित कर सकते हैं। बस आपको मुझे मेरे ई-मेल roopchandrashastri@gmail.com पर एक मेल करना होगा। मैं आपको “आपका ब्लॉग” पर लेखक के रूप में आमन्त्रित कर दूँगा। आप मेल स्वीकार कीजिए और अपनी अकविता, संस्मरण, मुक्तक, छन्दबद्धरचना, गीत, ग़ज़ल, शालीनचित्र, यात्रासंस्मरण आदि प्रकाशित कीजिए। |

आदरणीय डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री जी
जवाब देंहटाएंनमस्कार !
........बहुत ही सुंदर दोहे है
हर बार की तरह शानदार प्रस्तुति
जवाब देंहटाएंbahut sundar dohe ...
जवाब देंहटाएंnaman shastri ji !
आद. शास्त्री जी,
जवाब देंहटाएंज्ञान बाँटने से कोई, होता नहीं विपन्न।
विद्या धन का दानकर, बन जाओ सम्पन्न।
किस दोहे को किससे अच्छा कहूँ,सभी एक से बढ़कर एक हैं ! मैं पहले भी कह चुका हूँ जिस सादगी से आप गहरी से गहरी बात भी चंद शब्दों में कह देते हैं उससे आपकी गहन साहित्य-साधना का सहज ही अनुमान लगाया जा सकता है !
"भूसी-चावल संग रहें, तभी बढ़े परिवार।
जवाब देंहटाएंहुए धान से जब अलग, बाँट खाए संसार।५।....
कहाँ समझता है आज का समय इस तथ्य को...
"
पढवाने के लिए आभार
जवाब देंहटाएंज्ञान बढाते शानदार दोहे बहुत पसन्द आये………आभार्।
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर दोहे।
जवाब देंहटाएंअत्यंत लाजवाब.
जवाब देंहटाएंरामराम.
ज्ञान बाँटने से कोई, होता नहीं विपन्न।
जवाब देंहटाएंविद्या धन का दानकर, बन जाओ सम्पन्न|
वाह बेहतरीन दोहे हैं... बधाई एवं आभार स्वीकार करें !!
बहुत ही सुन्दर रचना!
जवाब देंहटाएंसभी एक से बढ़कर एक हैं..
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर दोहे ।
जवाब देंहटाएंआभार
बहुत ही सुन्दर दोहे..आभार
जवाब देंहटाएंब्लॉग जाल पर आप तो रचते काव्य प्रसंग।
जवाब देंहटाएंदोहे पढ़कर आपके मन में उदित उमंग।
बहुत सुन्दर दोहे...
जवाब देंहटाएंबढ़िया दोहे हैं शास्त्री जी ।
जवाब देंहटाएंसुंदर दोहे .... आभार
जवाब देंहटाएंदोहे पसंद आये.
जवाब देंहटाएंbahut hee badhiyaa
जवाब देंहटाएंज्ञान बाँटने से कोई, होता नहीं विपन्न।
जवाब देंहटाएंविद्या धन का दानकर, बन जाओ सम्पन्न।
गहरे भाव। बेहतरीन प्रस्तुति।
विद्या धन का दानकर, बन जाओ सम्पन्न
जवाब देंहटाएंअत्यंत मनोहारी दोहे
नमन शास्त्री जी