सावन-भादों मे छायेगा, रूप तुम्हारा नया-नया।। सीपों के मोती में पाया,रूप तुम्हारा नया-नया। सागर तल में गहरायेगा,रूप तुम्हारा नया-नया।। रचा-बसा चन्दा-मामा में,रूप तुम्हारा नया-नया। रात चाँदनी में आयेगा,रूप तुम्हारा नया-नया।। मलयानिल के झोंको में है,रूप तुम्हारा नया-नया। प्रेम-दिवस पर छा जायेगा,रूप तुम्हारा नया-नया। |
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शुक्रवार, 11 फ़रवरी 2011
"प्रेम दिवस सप्ताह पर एक पुरानी रचना" (डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री "मयंक")
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नये साल की नयी सुबह में, कोयल आयी है घर में। कुहू-कुहू गाने वालों के, चीत्कार पसरा सुर में।। निर्लज-हठी, कुटिल-कौओं ने,...
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कुहरे ने सूरज ढका , थर-थर काँपे देह। पर्वत पर हिमपात है , मैदानों पर मेह।१। -- कल तक छोटे वस्त्र थे , फैशन की थी होड़। लेक...
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सपना जो पूरा हुआ! सपने तो व्यक्ति जीवनभर देखता है, कभी खुली आँखों से तो कभी बन्द आँखों से। साहित्य का विद्यार्थी होने के नाते...
हर बार लगे कुछ नया नया।
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर .....
जवाब देंहटाएंअति सुंदर रचना जी
जवाब देंहटाएंबहुत अच्छी रचना है..
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर प्रेम गीत्।
जवाब देंहटाएंसुन्दर और भावपूर्ण रचना ।
जवाब देंहटाएं.......बधाई।
एक-एक शब्द भावपूर्ण ..... बहुत सुन्दर...
जवाब देंहटाएंवाह वाह , क्या बात है.
जवाब देंहटाएंबहुत प्यारा लिखते हैं आप , शास्त्री जी
बहुत लाजवाब, शुभकामनाएं.
जवाब देंहटाएंरामराम.
वाह आपकी उप्रोक्य पंक्तियों ने मान को मोह लिया...
जवाब देंहटाएंमेरे ब्लॉग पर आपके आशीर्वाद ने मुझे आत्मीय प्रसन्नता प्रदान किया है, मुझ अकिंचन कि ओर से बधाई एवं आभार स्वीकार करें |