गौरय्या का नीड़, चील ने हथियाया है
हलो-हाय का पाठ मातमी समझाया है
जाल बिछाया अपना, छीनी है हिन्दी की बिन्दी
अपने घर में हुई परायी, अपनी भाषा हिन्दी
खोटे सिक्के से लोगों को बहलाया है
हिन्दीभाषा से हमने, भारत को मुक्त कराया था
हिन्दी में मत माँगे थे, सत्ता का आसन पाया था
लेकिन गद्दी पाते ही हिन्दी को बिसराया है
चीन और जापान आज भाषा के बल पर आगे
किन्तु हमारे खेवनहारे नहीं नींद से जागे
खाया अपना, राग विदेशी अपनाया है
विश्वपटल पर कैसे होगी, अब पहचान हमारी
वाणी क्यों हो गयी विदेशी, ऐसी क्या लाचारी
पुरखों का अभिमान और सम्मान गँवाया है
अन्धे-गूँगे-बहरों को क्या अपनी व्यथा सुनायें
हुक्मरान हिन्दी के दिन को हिन्दी-डे बतलाएँ
मोहक हलवा-पूड़ी छोड़ा, पिज्जा-बर्गर खाया है
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शुक्रवार, 13 सितंबर 2013
"हिन्दी को बिसराया है" (डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक')
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सुन्दर प्रस्तुति-
जवाब देंहटाएंहिंदी पखवारे की शुभकामनायें-
सुन्दर एवं सामयिक रचना
जवाब देंहटाएंlatest post गुरु वन्दना (रुबाइयाँ)
LATEST POSTअनुभूति : Teachers' Honour Award
हमारा स्वाभिमान पुनः जगेगा
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर सर जी
जवाब देंहटाएंबहुत सुँदर है रचना
जवाब देंहटाएंबाकी बेवकूफों से
क्या है कहना !
सुँदर रचना
जवाब देंहटाएंसुँदर रचना
जवाब देंहटाएंसुँदर रचना
जवाब देंहटाएंहार्दिक शुभकामनाएं गुरु जी ,प्रणाम
जवाब देंहटाएंसुंदर सटीक सृजन !
जवाब देंहटाएंहिंदी दिवस की बधाई
जवाब देंहटाएं