"तीन मुक्तक"
(१)
आग को आग समझो, जलाती है ये
अपनी औकात सबको बताती है ये
दिल के ज़ज़्बात से खेलना मत कभी,
अच्छे-अच्छों के दिल को सताती है ये
(२)
श्वेत परिधान हैं, सादगी के लिए
सभ्यता है बनी, आदमी के लिए
दाग माथे का हो या हो पौशाक का
दाग़ तो दाग़ है ज़िन्दग़ी के लिए
(३)
सात रंग से भरा, फाग है ज़िन्दग़ी
दोस्ती का चमन, बाग है ज़िन्दग़ी
मत ग़लत सुर लगाना, कभी भी यहाँ
गीत और प्रीत का राग है ज़िन्द़गी
|
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सोमवार, 16 सितंबर 2013
1850वीं पोस्ट "तीन मुक्तक" (डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक')
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वाह वाह वाह आदरणीय गुरुदेव श्री हृदयस्पर्शी क्या कहने लाजवाब लाजवाब मुक्तक बहुत बहुत बधाई स्वीकारें.
जवाब देंहटाएं1850वीं पोस्ट के लिए बहुत बहुत बधाई,और शुभकामनाए...
जवाब देंहटाएंसुंदर !
जवाब देंहटाएंक्षमा करें उल्लूक अपनी धुन में रह गया
जवाब देंहटाएंबधाई 1850 पर देना वाकई में भूल गया !
बधाई !
आपकी इस उत्कृष्ट प्रविष्टि की चर्चा कल मंगलवार १ ७ /९ /१ ३ को राजेश कुमारी द्वारा चर्चा मंच पर की जायेगी आपका वहां स्वागत है।
जवाब देंहटाएं1850वीं पोस्ट के लिए बहुत बहुत बधाई,और शुभकामनाएं
जवाब देंहटाएंसात रंग से भरा, फाग है ज़िन्दग़ी
जवाब देंहटाएंदोस्ती का चमन, बाग है ज़िन्दग़ी
मत ग़लत सुर लगाना, कभी भी यहाँ
गीत और प्रीत का राग है ज़िन्द़गी
फुटपाथ की आस ,राग विहाग है ज़िन्दगी ,
सुहागन का सुहाग है ज़िदगी।
बढ़िया रचना। सार्थक अनुबोधक।
रंगबिरंगी इस दुनिया में, रंगों की मर्यादा समझें। सुन्दर गीत
जवाब देंहटाएंतीनो मुक्तक बहुत सुन्दर हैं .१८५० वीं पोस्ट की बधाई
जवाब देंहटाएंlatest post: क्षमा प्रार्थना (रुबैयाँ छन्द )
latest post कानून और दंड
तीनों मुक्तक दिल को छूते हैं ... भावपूर्ण ...
जवाब देंहटाएं१८५० रचनाओं की बधाई ... राम राम जी ...
1850वीं पोस्ट के लिए बहुत बहुत बधाई,और शुभकामनाए,तीनो मुक्तक बहुत सुन्दर हैं .
जवाब देंहटाएं