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दिल कभी
तो पत्थरों से भी लगाकर देखिए
प्यार
से मन्दिर में इनको तो सजाकर देखिए
मान
दोगे तो यही बन जायेंगे भगवान भी
आरती के
साथ दीपक को जगाकर देखिए
आदमी सोया
हुआ है आदमी के देश में
आदमीयत
का यहाँ डंका बजाकर देखिए
देवताओं
को किसी मनुहार की चाहत नहीं
नेकनीयत
से कभी वरदान पाकर देखिए
आस्था-विश्वास
का, ना “रूप” है ना रंग है
भावनाओं
के नगर में घर बसाकर देखिए
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गुरुवार, 16 जनवरी 2014
"आस्था-विश्वास" (डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक')
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सपना जो पूरा हुआ! सपने तो व्यक्ति जीवनभर देखता है, कभी खुली आँखों से तो कभी बन्द आँखों से। साहित्य का विद्यार्थी होने के नाते...
आस्था प्रबल है, विश्व हिला सकती है।
जवाब देंहटाएंबढ़िया प्रस्तुति-
जवाब देंहटाएंबधाई स्वीकारें आदरणीय-
भाव प्रवण रचना । बधाई
जवाब देंहटाएंवाह !
जवाब देंहटाएंkya baat kahi hai ...bhaawon ke madhyam se...bahut khoob sir :)
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