पेड़ पुराना हुआ
नीम का,
कैसे इसमें यौवन लाऊँ?
सूखी शाखाओं में
कैसे
कैसे नवअंकुर उपजाऊँ?
पात हो गये अब तो पीले,
अंग हो गये सारे ठीले,
तेज हवाओं से झोंखो
से,
कैसे निज अस्तित्व
बचाऊँ
पोर-पोर में पीर
समायी,
हिलना-डुलना अब दुखदायी,
वासन्ती इस मौसम
में अब,
कैसे सुखद समीर
बहाऊँ?
लोग तने को काट रहे
हैं
अंग-अंग को छाँ रहे
हैं,
आदम-हव्वा के
ज़ुल्मों से,
कैसे अब छुटकारा
पाऊँ?
पहले था ये बदन
सलोना
“रूप” हो गया अब तो
बौना,
बोलो अब कैसे
बौराऊँ?
किस-किस को अब
व्यथा सुनाऊँ??
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बुधवार, 29 जनवरी 2014
"कैसे नवअंकुर उपजाऊँ..?" (डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक')
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आपकी इस प्रस्तुति का लिंक 30-01-2014 को चर्चा मंच पर दिया गया है
जवाब देंहटाएंआभार
सबका अपना जीवनचक्र
जवाब देंहटाएंभावमय करते शब्दों का संगम
जवाब देंहटाएंमन को छूती पोस्ट
एक जीवित पेड़ के कटने के दर्द की गहन अभिव्यक्ति...
जवाब देंहटाएंबहुत भावपूर्ण प्रस्तुति
जवाब देंहटाएं