"माता मुझको भी तो अपनी दुनिया में आने दो!"
सेठानी पत्रिका में मेरी कविता
अपनी दुनिया में आने दो!
सीता-सावित्री बन करके,
जग में नाम कमाने दो!
अच्छी सी बेटी बनकर मैं,
अच्छे-अच्छे काम करूँगी,
अपने भारत का दुनिया में
सबसे ऊँचा नाम करूँगी,
माता मुझको भी तो अपना,
घर-संसार सजाने दो!
माता मुझको भी तो
अपनी दुनिया में आने दो!
बेटे दारुण दुख देते हैं
फिर भी इतने प्यारे क्यों?
सुख देने वाली बेटी के
गर्दिश में हैं तारे क्यों?
माता मुझको भी तो अपना
सा अस्तित्व दिखाने दो!
माता मुझको भी तो
अपनी दुनिया में आने दो!
बेटों की चाहत में मैया!
क्यों बेटी को मार रही हो?
नारी होकर भी हे मैया!
नारी को दुत्कार रही हो,
माता मुझको भी तो अपना
जन-जीवन पनपाने दो!
माता मुझको भी तो
अपनी दुनिया में आने दो!
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बहुत सुंदर रचना.
जवाब देंहटाएंबढ़िया रचना ,शुक्रिया टिप्पणी के लिए।
जवाब देंहटाएंबहुत ही अच्छी रचना। प्रकाशन के लिए आपको बहुत बहुत बधाई।
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर सार्थक प्रेरक रचना ..
जवाब देंहटाएंहार्दिक बधाई..