![]() हमने वफा का नाता, ताउम्र है निभाया
लेकिन कदम मिलाकर, तुमको न चलना आया
मरहम लगाने वाले, मिलते कदम-कदम पर
फिर भी हमारे दिल को, आराम कुछ न आया
दिल के लहू से लिखकर, कितने पयाम भेजे
लेकिन जवाब उसका, अब तक न कोई आया
राह तकते-तकते, अब चश्म थक गयी हैं
था इन्तज़ार जिसका, वो आज तक न आया
“रूप” की सुहानी, अब धूप ढल चुकी है
दम तोड़ते लम्हों में, हसरत रही बकाया
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मरहम लगाने वाले, मिलते कदम-कदम पर
जवाब देंहटाएंफिर भी हमारे दिल को, आराम कुछ न आया
बहुत खूब ... आज के दौर में झूठी मरहम जो लगाते हैं लोग ... सच्चा कौन मिलता है ...
लाजवाब हैं सभी शेर ...
क्या खूबसूरत ग़ज़ल है! मजा आ गया पढ़कर।बहुत खूब !
जवाब देंहटाएंक्या खूबसूरत ग़ज़ल है! मजा आ गया पढ़कर।बहुत खूब !
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर गजल.
जवाब देंहटाएंसुन्दर पंक्तियाँ।
जवाब देंहटाएंलाजवाब गजल
जवाब देंहटाएंबहुत उम्दा ग़ज़ल
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