ये टोपी हिन्दुस्तान की, ये टोपी है बलिदान की।
ये तेरी भी, ये मेरी भी, ये मजदूर किसान की।।
भेद नहीं है जाति-धर्म का, देती है आदेश कर्म का,
अपनी टोपी धारण करना, काम नहीं है लाज-शर्म का,
ये प्रतीक का चिह्न हमारे, स्वाभिमान-सम्मान की।
ये तेरी भी, ये मेरी भी, ये मजदूर किसान की।।
जिसने इस सीधी-सादी, अपनी टोपी को अपनाया,
उसने ही अपने समाज में, ऊँचे पद को है पाया,
टोपी से पहचान हमारे, भारत के परिधान की।
ये तेरी भी, ये मेरी भी, ये मजदूर किसान की।।
जैसे हिम के बिना अधूरी, लगती कंचनजंघा है,
वैसे ही सिर टोपी के बिन, लगता नंगा-नंगा है,
आन-बान है यही हमारे, प्यारे देश महान की।
ये तेरी भी, ये मेरी भी, ये मजदूर किसान की।।
सबसे न्यारी अपनी टोपी, संविधान की पोषक है,
मानवता के लिए, हमारी निष्ठा की उद्घोषक है,
याद दिलाती हमको अपने, धर्म और ईमान की।
ये तेरी भी, ये मेरी भी, ये मजदूर किसान की।। |
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मंगलवार, 23 जून 2015
"टोपी है बलिदान की" (डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक')
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