मौसम अच्छा हो
गया, हुआ शीत का अन्त।
पहन पीत परिधान
को, खुश हो रहा बसन्त।।
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पेड़ों ने पतझाड़
में, दिये पात सब झाड़।
हिम से अब भी हैं
ढके, चोटी और पहाड़।।
--
नवपल्लव की आस
में, पेड़ तक रहे बाट।
भक्त नहाने चल
दिये, गंगा जी के घाट।।
--
युगलों पर चढ़ने
लगा, प्रेमदिवस का रंग।
बदला सा परिवेश है,
बदल गये हैं ढंग।।
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उपवन में गदरा
रहे, पौधों के अब अंग।
मधुमक्खी लेकर
चली, कुनबा अपने संग।।
--
फूली सरसों खेत
में, पहन पीत परिधान।
गुनगुन की गुंजार
से, भ्रमर गा रहे गान।।
--
गेहूँ और मसूर भी,
लहर-लहर लहराय।
अपनी खेती देखकर, कृषक
रहे मुसकाय।।
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रविवार, 31 जनवरी 2016
दोहे "हुआ शीत का अन्त" (डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री "मयंक")
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