सात साल का लेखा जोखा
(डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री ‘मयंक’)
मित्रों!
आज से ठीक 7 साल पहले 21 जनवरी, 2009 को हिन्दी ब्लॉगिंग की दुनिया में मैंने अपना कदम बढ़ाया था। ये सात साल न जाने कैसे गुज़र गये मुझे पता ही न लगा। ऐसा लगता है कि यह कल ही की बात है। उस समय मेरी रचनाओं ने 100 का आँकड़ा भी पार नहीं किया था। लेकिन दिन गुजरते गये और रचनाएँ बढ़ती गईं। जिनकी संख्या बढ़कर अब 2000 के आस-पास पहुँच गई हैं। यदा-कदा मैं 24 ब्लॉगों में लिखता हूँ। लेकिन मेरे प्रमुख ब्लॉग निमन हैं।
मैं यह तो नहीं कहूँगा कि यह मेरी लगन और निष्ठा का परिणाम है। लेकिन इतना जरूर है कि मैं जिस किसी काम को हाथ में लेता हूँ उसमें तन-मन-धन से लग जाता हूँ। सबसे पहले मैंने अपना ब्लॉग “उच्चारण” के नाम से बनाया था। जिस पर आज की तारीख में 2555 दिनों में 2762 पोस्ट लग चुकी हैं और 668 समर्थक हैं मेरे। यहाँ मैंने सबसे पहली रचना लगाई-
सुख का सूरज उगे गगन में, दु:ख के बादल छँट जायें।
हर्ष हिलोरें ले जीवन में, मन की कुंठा मिट जायें।
चरैवेति के मूल मंत्र को अपनाओ निज जीवन में-
झंझावातों के काँटे पगडंडी पर से हट जायें।
उन दिनों श्रीमान ताऊ रामपुरिया पहेली का एक मात्र ब्लॉग चलाते थे तो मेरे भी मन में आया कि क्यों न अपनी श्रीमती जी के नाम पर एक ब्लॉग बना लिया जाए। अतः दिनांक 19 फरवरी को “अमर भारती” के नाम से ब्लॉग बना लिया। जिसके 95 समर्थक है और 335 पोस्ट यहाँ भी लगी हुई है।
इसके बाद मैंने 30 अप्रैल, 2009 में “शब्दों के दंगल” के नाम से गद्य का एक ब्लॉग बनाया। जिस पर अब तक 218 पोस्ट लग चुकी हैं और समर्थकों की संख्या 191 हो गई है। इसकी शुरूआत की इस रचना से-
"दंगल अब तैयार हो गया।" (डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक')
शब्दों के हथियार संभालो, सपना अब साकार हो गया।
ब्लॉगर मित्रों के लड़ने को, दंगल अब तैयार हो गया।।
करो वन्दना सरस्वती की, रवि ने उजियारा फैलाया,
नई-पुरानी रचना लाओ, रात गयी अब दिन है आया,
गद्य-पद्य लेखनकारी में शामिल यह परिवार हो गया।
ब्लॉगर मित्रों के लड़ने को, दंगल अब तैयार हो गया।।
देश-प्रान्त का भेद नही है, भाषा का तकरार नही है,
ज्ञानी-ज्ञान, विचार मंच है, दुराचार-व्यभिचार नही है,
स्वस्थ विचारों को रखने का, माध्यम ये दरबार हो गया।
ब्लॉगर मित्रों के लड़ने को, दंगल अब तैयार हो गया।।
सावधान हो कर के अपने, तरकश में से तर्क निकालो,
मस्तक की मिक्सी में मथकर, सुधा-सरीखा अर्क निकालो,
हार न मानो रार न ठानो, दंगल अब परिवार हो गया।
ब्लॉगर मित्रों के लड़ने को, दंगल अब तैयार हो गया।।
इसके बाद मैंने “मयंक की डायरी” के नाम से एक और ब्लॉग बनाया। जो मैं बनाना नहीं चाहता था। लेकिन मेरे एक मित्र अपना ब्लॉग बनवाने के लिए मेरे पास आये और मैंने उनका ब्लॉग बनाया तो यह मेरे ही नाम से बन गया। खैर मैंने प्रभू की देन समझकर इस नाजायज सन्तान के अपना नाम देकर अपना लिया।
इस पर पोस्ट लगी हैं 200 और समर्थक 107 हैं। इस पर 19 मई, 2009 को सबसे पहली पोस्ट थी-
‘‘चन्दा और सूरज’’ (डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री ‘मयंक’)
चन्दा में चाहे कितने ही, धब्बे काले-काले हों।
सूरज में चाहे कितने ही, सुख के भरे उजाले हों।
लेकिन वो चन्दा जैसी शीतलता नही दे पायेगा।
अन्तर के अनुभावों में, कोमलता नही दे पायेगा।।
सूरज में है तपन, चाँद में ठण्डक चन्दन जैसी है।
प्रेम-प्रीत के सम्वादों की, गुंजन वन्दन जैसी है।।
सूरज छा जाने पर पक्षी, नीड़ छोड़ उड़ जाते हैं।
चन्दा के आने पर, फिर अपने घर वापिस आते हैं।।
सूरज सिर्फ काम देता है, चन्दा देता है विश्राम।
तन और मन को निशा-काल में, मिलता है पूरा आराम।।
4 नवम्बर, 2009 को एक ब्लॉग
मैंने ब्लॉगर मित्रों के नाम पते सहेजने के लिए डायरेक्ट्री के नाम से बनाया। लेकिन उस पर 100 से अधिक नाम-पते नहीं मिल सके और इसका नाम बाल चर्चा मंच रख दिया। लेकिन बाल साहित्य के बहुत ही थोड़े सले ब्लॉग थे और उनमें से अधिकांश पर नियमित पोस्टें लहीं लगती थीं। इस लिए मैंने अब इसका नाम “धरा के रंग” रख दिया है। इस पर पोस्ट लगी हैं 167 और समर्थक 189 हैं।
इसके बाद मैंने चर्चाकार के रूप में ब्लॉगिंग की दुनिया में पदार्पण किया और चर्चा मंच पर "दिल है कि मानता नही" के नाम से पहली चर्चा 18 दिसम्बर, 2009 को लगाई। चर्चा मंच के आज की तारीख में 1286 समर्थक है और चर्चाओं का आँकड़ा 2228 को पार कर गया है।
दिनांक 9 मई, 2010 को मैंने बालसाहित्य का एक ब्लॉग बनाया और इसको नाम दिया “नन्हे सुमन”। इस पर पोस्ट लगी हैं 255 और समर्थक 118 हैं। बच्चों को समर्पित इस ब्लॉग पर मेरी सबसे पहली रचना थी-
“तार वीणा के बजे बिन साज सुन्दर।” (मयंक)
कह दिया मेरे सुमन ने आज सुन्दर।
तार वीणा के बजे बिन साज सुन्दर ।।
ज्ञान की गंगा बही, विज्ञान पुलकित हो गया,
आकाश झंकृत हो गया, संसार हर्षित हो गया,
नाम से माँ के हुआ आगाज़ सुन्दर ।
तार वीणा के बजे बिन साज सुन्दर ।।
बेसुरे से राग में, अनुराग भरने को चला हूँ,
मैं बिना पतवार, सरिता पार करने को चला हूँ,
माँ कृपा करदो, बनें सब काज सुन्दर ।
तार वीणा के बजे बिन साज सुन्दर ।।
वन्दना है आपसे, रसना में माँ रस-धार दो,
लेखनी चलती रहे, शब्दो को माँ आधार दो,
असुर भागें, हो सुरों का राज सुन्दर ।
तार वीणा के बजे बिन साज सुन्दर ।।
उत्तराखण्ड की धरती पर रहने के
कारण दिनांक को एक ब्लॉग“देवभूमि चिट्ठाकार समिति” दिनांक 23 फरवरी, 2011 को बनाया। इस पर 18 पोस्ट लगी है और समर्थक भी 40 ही हैं। जिसका नाम अब सुख का सूरज रख दिया है।
ब्लॉगवाणी और चिट्टाजगत एगेरीगेटरों के बन्द हो जाने के कारण मैंने अपना एक ब्लॉग एग्रीगेटर “ब्लॉग मंच” के नाम से 31 दिसम्बर, 2010 को बनाया। इस पर अब तक 65 पोस्टों के साथ 201 समर्थक भी है।
नये चर्चाकारों को चर्चा मंच में सहयोगी बनाने के उद्देश्य से मैंने दिनांक को “टेस्ट चर्चा मंच" के नाम से भी एक ब्लॉग 20 सितम्बर, 2010 को बनाया। इस पर भी 12 पोस्ट लगही हैं और समर्थकों की संख्या 14 है।
अपने पौत्र प्रांजल और पौत्री प्राची के नाम से भी एक ब्लॉग को मूर्त रूप दिया दिनांक 18 सितम्बर, 2011 को। "प्रांजल-प्राची"पर 97 बालरचनाएं अब तक आ चुकी हैं और समर्थकों की संख्या 40 हो गई है।
इस पर पहली बाल कविता थी-
मम्मी देखो मेरी डॉल।
खेल रही है यह तो बॉल।।
पढ़ना-लिखना इसे न आता।
खेल-खेलना बहुत सुहाता।।
कॉपी-पुस्तक इसे दिलाना।
विद्यालय में नाम लिखाना।।
रोज सवेरे मैं गुड़िया को,
ए.बी.सी.डी. सिखलाऊँगी।
अपने साथ इसे भी मैं तो,
विद्यालय में ले जाऊँगी।।
हिन्दी ब्लॉगिंग में आने का मुझे सबसे बड़ा लाभ यह मिला कि जनवरी 2011 में मेरी दो पुस्तकें “सुख का सूरज” (हिन्दी कविताएँ) और “नन्हे सुमन” (बाल कविताएँ) प्रकाशित हुईं।
इसके बाद अक्टूबर 2011 में “धरा के रंग” (हिन्दी कविताएँ) और “हँसता गाता बचपन” (बाल कविताएँ) भी प्रकाशित हो गईं। आगामी माह में मेरी दो पुस्तकें "रूप की धूप" और "कदम-कदम पर घास" भी आने वाली हैं।
इसके साथ ही मैंने सैकड़ों मित्रों के ब्लॉग और उनके खूबसूरत हैडर भी बड़े ही मनोयोग से बनाए।
यह थी इण्टरनेट पर मेरी सात साल की कारगुजारी।
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