रसना से मिलती सौगातें
अच्छी लगतीं प्यारी बातें
दो से चार नयन जब होते
आँखों में हो जाती बातें
दोपाये और चौपाये भी
करते न्यारी-न्यारी बातें
हाव-भाव और भाव-भंगिमा
करते कितनी सारी बातें
पलकों पर जब बिन्दु छलकते
हो जातीं दुखियारी बातें
जब अधरों पर हँसी चहकती
तब होती सुखकारी बातें
जब बातों से बात निकलतीं
टीका-टिप्पणीकारी बातें
काली-अंधियारी रातों में
होती विस्मयकारी बातें
त्यौहारों की मधु-बेला में
आशा की संचारी बातें
बाग-बगीचे, वन-उपवन में
आती हैं संसारी बातें
अपनी बातें-उनकी बातें
जीवन पर आधारी बातें
बातें करना है लाचारी
कितनी हैं बेचारी बातें
"रूप" सलोना सबको भाता होती हैं कजरारी बातें |
"उच्चारण" 1996 से समाचारपत्र पंजीयक, भारत सरकार नई-दिल्ली द्वारा पंजीकृत है। यहाँ प्रकाशित किसी भी सामग्री को ब्लॉग स्वामी की अनुमति के बिना किसी भी रूप में प्रयोग करना© कॉपीराइट एक्ट का उलंघन माना जायेगा। मित्रों! आपको जानकर हर्ष होगा कि आप सभी काव्यमनीषियों के लिए छन्दविधा को सीखने और सिखाने के लिए हमने सृजन मंच ऑनलाइन का एक छोटा सा प्रयास किया है। कृपया इस मंच में योगदान करने के लिएRoopchandrashastri@gmail.com पर मेल भेज कर कृतार्थ करें। रूप में आमन्त्रित कर दिया जायेगा। सादर...! और हाँ..एक खुशखबरी और है...आप सबके लिए “आपका ब्लॉग” तैयार है। यहाँ आप अपनी किसी भी विधा की कृति (जैसे- अकविता, संस्मरण, मुक्तक, छन्दबद्धरचना, गीत, ग़ज़ल, शालीनचित्र, यात्रासंस्मरण आदि प्रकाशित कर सकते हैं। बस आपको मुझे मेरे ई-मेल roopchandrashastri@gmail.com पर एक मेल करना होगा। मैं आपको “आपका ब्लॉग” पर लेखक के रूप में आमन्त्रित कर दूँगा। आप मेल स्वीकार कीजिए और अपनी अकविता, संस्मरण, मुक्तक, छन्दबद्धरचना, गीत, ग़ज़ल, शालीनचित्र, यात्रासंस्मरण आदि प्रकाशित कीजिए। |
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रविवार, 15 मई 2016
"बातें ही बातें" (डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक')
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