अमर शहीदों का कभी, मत करना अपमान।
किया इन्होंने देशहित, अपना तन बलिदान।।
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गुलदस्ते में अमन के, अमन हो गया गोल।
माली अपने चमन में, छिड़क रहा विषघोल।।
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जनसेवक जब वतन में, करते उलटे काज।
फिर कैसे बन पायेगा, उन्नत देश-समाज।।
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बिल्ले रखवाली करें, कुत्ते राग सुनाय।
अब तो अपने देश में, अन्धे राह बताय।।
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मन पंछी उन्मुक्त है, इसकी बात न मान।
जीवन एक यथार्थ है, इसको लेना जान।।
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रवि की किरणें दे रहीं, जग को जीवन दान।
पाकर धवल प्रकाश को, मत करना अभिमान।।
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जीवन तो त्यौहार है, जानो इसका सार।
प्यार और मनुहार से, बाँटो कुछ उपहार।।
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तम को हरने के लिए, खुद को रहा जलाय।
दीपक काली रात को, आलोकित कर जाय।।
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सूखे रेगिस्तान में, बढ़ जाती है प्यास।
ख्वाबों के संसार में, रहता मनुज उदास।।
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जो मन में हो आपके, लिखो उसी पर लेख।
बिना छंद तुकबन्दियाँ, बन जाती आलेख।।
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गुरुवार, 3 नवंबर 2016
दोहावली "अमन हो गया गोल" (डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक')
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अमर शहीदों का कभी, मत करना अपमान।
जवाब देंहटाएंकिया इन्होंने देशहित, अपना तन बलिदान।।
जो मन में हो आपके, लिखो उसी पर लेख।
बिना छंद तुकबन्दियाँ, बन जाती आलेख।।
..बहुत अच्छी सीख देती रचना
सुन्दर प्रस्तुति ।
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर
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