करना कभी न भूलकर, कुदरत से खिलवाड़।
कुदरत खिलते चमन को, पल में करे उजाड़।।
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मास कार्तिक दे रहा, हम सबको उपहार।
हर्ष और उल्लास को, लाते हैं त्यौहार।।
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खुशियाँ सबको बाँटना, होना नहीं उदास।
जीवन के तो अंग हैं, हास और परिहास।।
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विद्वानों की तो सभी, करते हैं मनुहार।
देश और परदेश में, उनको मिलता प्यार।।
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दर्प नहीं करना कभी, बन करके धनवान।
निर्धन-श्रमिक-किसान हैं, धरती के भगवान।।
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काँटें रखते चमन में, अपने सदा उसूल।
जो सुमनों को मसलते, उनको चुभते शूल।।
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विध्वंसों के बाद में, होता नवनिर्माण।
जीवनभर करते रहो, निर्बल का परित्राण।।
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बुधवार, 1 नवंबर 2017
दोहे "होता नवनिर्माण" (डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक')
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सुन्दर।
जवाब देंहटाएंआपकी इस प्रस्तुति की चर्चा 02-11-2017 को चर्चा मंच पर चर्चा - 2776 में की जाएगी |
जवाब देंहटाएंधन्यवाद
प्रेरित करती हैं आपकी रचनाएं। प्रणाम
जवाब देंहटाएंSundar bhaav
जवाब देंहटाएं