जीवन के अवसान का, कैसे हो अनुमान।
कुदरत के कानून को,
भूल गया इंसान।।
जितनी बढ़ती है उमर, उतनी
बढ़ती प्यास।
भँवरा जीवनभर नहीं, ले
पाता सन्यास।।
जिनके लेखन में रहें, कुण्ठा
भरे विचार।
फिर उनके सपने भला, कैसे
हों साकार।।
मेहनत से जो कुछ मिले, उसमें
कर सन्तोष।
मिन्नत करने से नहीं, भरता
खाली कोष।।
(मेहनत से जो कुछ मिले...14 मात्राएँ
हैं..अपवाद स्वरूप)
माना भरा दिमाग में, शब्दों
का है कोश।
लेकिन अपने ज्ञान पर, मत
होना मदहोश।।
|
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मंगलवार, 21 नवंबर 2017
दोहे "मत होना मदहोश" (डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक')
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बहुत सुंदर दोहे
जवाब देंहटाएंसन्निकट आ रही,पलपल अवसान की घड़ी,
जवाब देंहटाएंप्यास यै कौन सी, अधूरी हरपल मन में बढी...
👌👌👌👌👌
वाह !!
जवाब देंहटाएंWah.ati sundar
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