भाषण से बहलाने वालों, वचनों के
कंगाल सुनो
माल मुफ्त का खाने वालों, जंगल के
शृंगाल सुनो
बिना खाद-पानी के कैसे, खेतों में
बिरुए पनपें
ठेकेदारों ने उन सबका हड़प लिया है
माल सुनो
प्राण निछावर किये जिन्होंने आजादी
दिलवाई थी
उन सबके वंशज गुलशन में आज हुए बेहाल
सुनो
घेर लिये हैं चाँद-सितारे धरती के खद्योतों
ने
पावस में खामोश हो गये कोकिल और मराल
सुनो
भोली सोनचिरैय्यों के, चीलों ने गहने
झपट लिए
अवश-विवश गौरय्या के अब कैसे सुधरें हाल
सुनो
सीधे-सादे श्रम करते, मक्कारों की
पौबारह है
अत्याचारों की चक्की में, पिसते माँ
के लाल सुनो
दुनिया में बदनाम आजकल लोकतन्त्र का “रूप”
हुआ
जाल बुन रहे हैं जनसेवक हो करके वाचाल
सुनो
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रविवार, 17 दिसंबर 2017
ग़ज़ल "वचनों के कंगाल सुनो" (डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक')
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वाह क्या बात
जवाब देंहटाएंबहुत खूब आदरणीय