जो मानवता के लिए, चढ़ता गया सलीब।
वो ही होता कौम का, सबसे बड़ा हबीब।।
जिसमें होती वीरता, वही भेदता व्यूह।
चलता उसके साथ ही, जग में विज्ञ समूह।।
मंजिल है जिस पन्थ में, उस पर चलते लोग।
पालन करता नियम जो, वो ही रहे निरोग।।
जो जन सेवा के लिए, करता है पुरुषार्थ।
उसके सारे काम ही, कहलाते परमार्थ।।
थोथी बातों से नहीं, कोई बने मसीह।
लालच में जपता सदा, ढोंगी ही तस्बीह।।
जिसके दिल में हों भरे, ममता-समता-प्यार।
वो जनता के हृदय पर, कर लेता अघिकार।।
दीन-दुखी-असहाय को, बाँटो कुछ उपहार।
शिक्षा देता है यही, क्रिसमस का त्यौहार।।
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रविवार, 24 दिसंबर 2017
दोहे "क्रिसमस का त्यौहार" (डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक')
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सुन्दर
जवाब देंहटाएंआपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल सोमवार (25-12-2017) को "क्रिसमस का त्यौहार" (चर्चा अंक-2828) पर भी होगी।
जवाब देंहटाएं--
सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
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चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट अक्सर नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
राधा तिवारी
अनुपम सृजन
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर
जवाब देंहटाएंसुन्दर दोहे
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर सामयिक रचना ...
जवाब देंहटाएं