मन का सुमन हमेशा गाये, अभिनव मंगल गान।
अपनी कुटिया बन जाएगी, फिर से विमल-वितान।।
उगें नये पौधे बगिया में, मिले खाद और पानी,
शिक्षा के भण्डार भरे हों, नर-नारी हों ज्ञानी,
तुलसी, सूर, कबीर सुनाएँ, राम कृष्ण की तान।
अपनी कुटिया बन जाएगी, फिर से विमल-वितान।।
ललनाएँ सीता जैसी हों, भरत-लखन से भाई,
वीर शिवा जैसे प्रसून हों, कलियाँ लक्ष्मीबाई,
आजादी के परवानों का, होगा जब सम्मान।
अपनी कुटिया बन जाएगी, फिर से विमल-वितान।।
चिंगारी आतंकवाद की, भड़के नहीं वतन में,
पौध न अब अलगाववाद की, उपजे कहीं चमन में,
इन्सानों की बस्ती में, शैतान न हों मेहमान।
अपनी कुटिया बन जाएगी, फिर से विमल-वितान।।
सुख का सूरज उगे गगन में, घन अमृत बरसायें,
विश्व गुरू बनकर हम जग को, पावन पथ दिखलायें,
तब सचमुच ही कहलाएगा, मेरा भारत देश महान।
अपनी कुटिया बन जाएगी, फिर से विमल-वितान।।
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शुक्रवार, 22 दिसंबर 2017
गीत "सुख का सूरज उगे गगन में" (डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक')
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जी नमस्ते ,
जवाब देंहटाएंआपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल शनिवार (०३-0७-२०२१) को
'सघन तिमिर में' (चर्चा अंक- ४११४) पर भी होगी।
आप भी सादर आमंत्रित है।
सादर
ऐसा ही हो, यही मनोकामना है
जवाब देंहटाएंवाह हमेशा की तरह सुन्दर दोहे शास्त्री जी ! साधुवाद :: ।
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर सार्थक दोहे ।
जवाब देंहटाएंअति सुंदर
जवाब देंहटाएं