लीक पीटने का कहीं, छूट न जाय रिवाज।
मना रहा है तभी तो, महिला-दिवस समाज।।
जब तक जग में रहेगा, मौखिक जोड़-घटाव।
तब तक जायेगा नहीं, भेद-भाव का भाव।
नारी की अपनी अलग, कैसे हो पहचान।
ढोती है वो उमर भर, साजन का उपनाम।।
सीमाओँ में है बँधी, नारी की परवाज।
नारी की कमनीयता, कमजोरी है आज।।
सदियों से महिलाओं का, होता मर्दन मान।
अहंकार का पुरुष में, रहता भाव प्रधान।।
केवल कागज-कलम में, नारी दुर्गा रूप।
मान नहीं उसको मिला, पोथी के अनुरूप।।
अब तक भी परिवेश में, आया नहीं सुधार।
पूर्ण नहीं अब तक मिला, नारी को अधिकार।।
शक्ति-स्वरूपा हो भले, माता का अवतार।
नारी की सुनता नहीं, कोई करुण पुकार।।
आओ महिलादिवस पर, ऐसे करें उपाय।
जग में नारि-जाति पर, कहीं न हो
अन्याय।।
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बुधवार, 7 मार्च 2018
दोहे "नारी दुर्गा रूप" (डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री ‘मयंक’)
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bahut khoob
जवाब देंहटाएंआओ महिलादिवस पर, ऐसे करें उपाय।
जवाब देंहटाएंजग में नारि-जाति पर, कहीं न हो अन्याय।।
...बहुत अच्छी सामयिक रचना
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