सूरज आया गगन में, फैला धवल प्रकाश।
मूरख दीपक हाथ ले, खोज रहा उजियास।।
गले मिलें जब प्यार से, रामू और रसीद।
अपने प्यारे देश में, समझो तब ही ईद।।
अच्छी सूरत देखकर, मत होना अनुरक्त।
जग के मायाजाल से, मन को करो विरक्त।।
काली छतरी ओढ़ के, आते गोरे लोग।
बारिश में करते सभी, छाते का उपयोग।।
शाम हुई सूरज ढला, गयी धरा से धूप।
ज्यों-ज्यों बढ़ती है उमर, त्यों-त्यों ढलता रूप।। |
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क्या बात वाह
जवाब देंहटाएंरूप-रंग ढलते हुए एक दिन इंसान भी चला जाता है, लेकिन उसकी अच्छाई-बुराईयां याद रखी जाती हैं
जवाब देंहटाएंबहुत अच्छी प्रस्तुति
आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल बुधवार (27-06-2018) को "मन को करो विरक्त" ( चर्चा अंक 3014) पर भी होगी।
जवाब देंहटाएं--
चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
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हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
राधा तिवारी