सज्जनता अब हो गई, भारत में लाचार।
मानवता दम तोड़ती, फैला भ्रष्टाचार।।
सत्तापक्ष सबल हुआ, है विपक्ष कमजोर।
इसीलिए जनतन्त्र में, बनते नियम कठोर।।
अब बिल्ली के गले में, घण्टी बाँधे कौन।
आँखें सब कुछ बोलती, अधर हो गये मौन।।
लम्बी-लम्बी मत भरो, शासक आज छलाँग।
अन्त करो आतंक का, जनता की है माँग।
फतह करो अब पाक को, उड़ो नहीं बिन पंख।
अर्जुन बन कर फूँकिये, देवदत्त सा शंख।।
सबका साथ-विकास का, मन्त्र करो साकार।
महँगाई को कम करो, निर्धन करे पुकार।।
शिक्षा का आधार हो, सबके लिए समान।
अब तो वर्ग विशेष का, बन्द करो अनुदान।।
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बुधवार, 19 जून 2019
दोहे "देवदत्त सा शंख" (डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक')
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जवाब देंहटाएंधन्यवाद
वाह!!क्या बात है!!
जवाब देंहटाएंवाह बेहतरीन
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर और सार्थक सृजन हर बार की तरह दोहा छंद बेमिसाल
जवाब देंहटाएं