बदलें केवल पत्तियाँ, जड़े
न बदलें पेड़।
माली ऐसा बदलिए, जो जड़
रहा उखेड़।।
मत बदलो सिद्धान्त को, बदल
दीजिए राह।
उसे मीत मत समझिए, जो करता
गुमराह।।
व्यथा बताये वो किसे,
जिसका उजड़ा नीड़।
आँसू देते हैं बता, मन की
सारी पीड़।।
बन्द नहीं करना कभी, आशाओं
के द्वार।
मजबूती से थामना, लहरों
में पतवार।।
दर्प नहीं करना कभी, रहना
सदा उदार।
जो लिखने में कुशल हैं,
करते वही सुधार।।
देख-भालकर कर पग धरो,
राहों के अनुसार।
बाधाओं को देखकर, मान न
लेना हार।।
होता है नभ का नहीं, कोई ओर न
छोर।
उड़ती हुई पतंग की, नाजुक
होती डोर।।
|
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सोमवार, 3 जून 2019
दोहे "जड़े न बदलें पेड़" (डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक')
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शानदार सार्थक दोहे। अनुपम।
जवाब देंहटाएंअतिशय सुंदर
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