मानसरोवर
में नहीं, दिखते हैं अब हंस।
ओढ़
लबादा कृष्ण का, घूम रहे हैं कंस।।
पुस्तक
तक सीमित हुए, वेदों के सन्देश।
भारत
का बदला हुआ, लगता है परिवेश।।
भावप्रवण अब हैं नहीं, चलचित्रों के गीत।
वाद्य
यन्त्र हैं पश्चिमी, कर्कश है संगीत।।
गति-यति,
तुक-लय का हुआ, बिल्कुल बेड़ा गर्क।।
कथित
सुखनवर दे रहे, तथ्यहीन सब तर्क।।
काव्यशास्त्र का है नहीं, जिनको कुछ भी ज्ञान।
वो
समझाते काव्य का, लोगों को विज्ञान।।
योगशास्त्र
की है नहीं, जिनको जरा तमीज।
धर्मगुरू
बनकर वही, बाँट रहे ताबीज।।
कैसा
ये जनतन्त्र है, लोग हुए उन्मुक्त।
नगर
गाँव-जंगल हुए, अब दूषण से युक्त।।
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समय के साथ सब कुछ बदलता है..समसामयिक दोहे
जवाब देंहटाएंयथार्थपरक बेहतर सामयिक भाव
जवाब देंहटाएंबेहद खूबसूरत रचना