कहीं किसी भी हाट में, बिकती नहीं तमीज।
काशी में अब भी बहे, पतित-पावनी धार।।
पूरी ताकत को लगा, चला रहे पतवार।
लेकिन नहीं विपक्ष की, नाव लग रही पार।।
कृपण बने खुद के लिए, किया महल तैयार।
अपशब्दों की वो करें, रोज-रोज बौछार।।
पूर्व जन्म में किसी का, खाया था जो कर्ज।
उसको सूद समेत अब, लौटाना है फर्ज।।
रखना नहीं दिमाग में, राजनीति में मैल। खटते रहना रात-दिन, ज्यों कोल्हू का बैल।। |
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शुक्रवार, 21 जून 2019
समर सलिल पत्रिका में "बिकती नहीं तमीज" (डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक')
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जी नमस्ते,
जवाब देंहटाएंआपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल शनिवार (22 -06-2019) को "बिकती नहीं तमीज" (चर्चा अंक- 3374) पर भी होगी।
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चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट अक्सर नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
आप भी सादर आमंत्रित है
….
अनीता सैनी
हमेशा की तरह बढ़िया दोहे .
जवाब देंहटाएंबहुत बहुत बधाई सर।
जवाब देंहटाएंबेहतरीन /बेमिसाल।