बात सत्तावन साल पुरानी है हमारे पड़ोस में एक वृद्ध महिला रहती थी। जिसको पूरा मुहल्ला अम्मा के नाम से पुकारता था, लेकिन उनका नाम हरदेई था।
उन दिनों हमने एक गइया पाली हुई थी। घर में हम लोग सुबह गुड़ के साथ मट्ठा पी लिया करते थे। और माता जी उसके लिए घास लेने चली जातीं थी। उस समय मेरी अवस्था 12 साल की थी। बाल मन था अतः मन में विचार आया कि माता जी के आने से पहले क्यों न कढ़ी और चावल बना लिया जाये।
बस फिर क्या था मैंने जितनी समझ थी उसके अनुसार अपना काम शुरू कर दिया। और कढ़ी में छौंक लगा दिया। तभी वो वृद्ध महिला जिसको हम अम्मा कहा करते थे उधर से गुजरी और और बड़े कौतूहल से मेरे क्रिया-कलापों को देखने लगी। अब मुझे क्या पता था कि कढ़ी में कितना बेसन घोलना चाहिए?
अम्मा ने मुझे कहा- “रूपचन्द बेटा क्या कर रहा है?”
मैंने कहा- “अम्मा कढ़ी बना रहा हूँ।“
अम्मा ने जब चमचा कढ़ाई में चला कर देखा तो हँसने लगी और बोली बेटा कब तक पकायेगा इस पानी को। इसमें बेसन तो बहुत कम डाला है तूने।
मैंने कहा- “अम्मा मुझे क्या पता कि कितना बेसन डालते हैं।“
तब अम्मा ने कहा- “तू अब पास में मेरे पास में बैठकर देखता जा। मैं तुझे सिखाती हूँ कढ़ी बनाना।“
अम्मा ने कुछ बेसन और घोलकर कढ़ाई में मिला दिया। आधे घंटे में कढ़ी बन गयी तब अम्मा ने चावल बीन कर चावल भी पका दिये और बड़े प्यार से मुझे खाना खिलाया।
आज मैं जब भी कढ़ी-चावल बनाता हूँ तो बरबस ही अम्मा की याद आ जाती है।
ऐसा नहीं कि अम्मा सिर्फ मेरी ही मदद करती थी। वो तो पूरे मुहल्ले में सबकी मदद करती थी।
मट्ठे में रोटी मलकर गली के कुत्ते खिलाना तो उसका रोज का काम था। इस काम में उसके पति कन्हैया दादा उसकी भरपूर मदद करते थे।
मैंने अम्मा को अपने जीवन काल में कभी क्रोधित होते हुए नहीं देखा था। लेकिन उस रोज तो कमाल ही हो गया। जब एक मनचला एक जवान लड़की पर फब्तियाँ कस रहा था।
अम्मा से रहा न गया और अपनी छड़ी से उसने मनचले की पिटायी कर दी।
उसका नाम तो हरदेई था मगर वो वाकई में सबकी अम्मा थी।
“जीवन के जो बच्चों को, कर्म सदा सिखलाती है।
ममता जिसके भीतर होती, माता वही कहाती है।।"
डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
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सोमवार, 6 जनवरी 2020
संस्मरण "दादी अम्मा" डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
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जी नमस्ते,
जवाब देंहटाएंआपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल बुधवार(८-०१-२०२०) को "जली बाती खिले सपने"(चर्चा अंक - ३५७४) पर भी होगी।
चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट अक्सर नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
आप भी सादर आमंत्रित है
….
अनीता सैनी
बहुत प्यारा सा और निश्छल सा संस्मरण !
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