-१- चार टके की नौकरी, लाख टके की घूस। लोलुप नौकरशाह ही, रहे देश को चूस।। मक्कारों की नाक में, डाले कौन नकेल। न्यायालय में मेज के, नीचे चलता खेल।। रहकर पास-पड़ोस में, बोल-चाल है बन्द। लेकिन भाई की उन्हें, सूरत नहीं पसन्द।। कहीं किसी भी हाट में, बिकती नहीं तमीज। वैसा ही पौधा उगे, जैसा बोते बीज।। जो मन में रखता नहीं, किसी तरह का मैल। वो खटता है रात-दिन, ज्यों कोल्हू का बैल।। हठ करने का समय अब, निकल गया है दूर। वृद्धावस्था में कभी, मत होना मग़रूर।। जीवन में चाहो अगर, पाना कुछ सम्मान। अपनों पर मत तानना, वाणी का संधान।। लोग बाज आते नहीं, मक्कारी से आज। महज दिखावे के लिए, होते हैं सब काज।। जिसके दिल में हों भरा, ममता-समता-प्यार। वो जनता के हृदय पर, कर लेता अघिकार।। |
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बुधवार, 28 दिसंबर 2022
दोहे "लाख टके की घूस" (डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक')
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बहुत ही सुन्दर
जवाब देंहटाएंरोचक लिंक्स. मेरी पोस्ट को चर्चा में शामिल करने हेतु आभार।
जवाब देंहटाएंआदरणीय डॉ साहब सादर प्रणाम !
जवाब देंहटाएंघूस लेनेवाला बुरा है या लेने वाला , यह अंडा - मुर्गी वाले यक्ष प्रश्न सा यथावत है !
थोड़े में बहुत कहते , दोहो के लिए अभिनन्दन !
एवं वैश्विक नव वर्ष २०२३ की बहुत बहुत शुभकामनाएं !
जय भारत ! जय भारती !!
जय श्री कृष्ण जी !