-- वासन्ती परिधान ओढ़कर, सूरज ने भी रंग दिखाया। मुझको यह आभास हो रहा, अब बसन्त का मौसम आया।। -- पहिन बसन्ती-पीली साड़ी, फूली सरसों मनभावन है। गीत और संगीत बसन्ती, मौसम लोक-लुभावन सा है। गेहूँ लहर-लहर बलखाते, भँवरा फूलों पर मँडराया। मुझको यह आभास हो रहा, अब बसन्त का मौसम आया।। -- आम, नीम भी बौराए है, तरुवर नव पल्लव पाये है। पीपल,गूलर भी हर्षित हैं, भँवरे गुल पर आकर्षित हैं। सेमल में भी फूल खिले हैं, जंगल में पलाश मुस्काया। मुझको यह आभास हो रहा, अब बसन्त का मौसम आया।। -- नील-गगन से छँटा कुहासा, कोयल मीठे स्वर में गातीं, हिमगिरि साफ दिखाई देते, नदिया कल-कल नाद सुनातीं। हीटर, गीजर बन्द हो गए , सरदी ने भी कोप घटाया। मुझको यह आभास हो रहा, अब बसन्त का मौसम आया।। -- |
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सोमवार, 12 फ़रवरी 2024
गीत "जंगल में पलाश मुस्काया" (डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक')
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