-- वासन्ती परिधान पहनकर, मौसम आया प्यारा है। कोमल-कोमल कलियों ने भी, अपना रूप निखारा है।। -- तितली सुन्दर पंख हिलाती, भँवरे गुंजन करते हैं, खेतों में लहराते बिरुए, जीवन में रस भरते हैं, उपवन की फुलवारी लगती कंचन का गलियारा है। कोमल-कोमल कलियों ने भी, अपना रूप निखारा है।। -- बीन-बीनकर तिनके लाते, चिड़िया और कबूतर भी, बड़े जतन से नीड़ बनाते, बया-चील और तीतर भी, जंगल में टेसू का पादप, बना हुआ अंगारा है। कोमल-कोमल कलियों ने भी, अपना रूप निखारा है।। -- अंगूरों के गुच्छे लटके, फिर आँगन की बेलों में, सुर्ख नये आकार सजे हैं, फिर बगिया के केलों में, इठलाती-बलखाती फिर से, बहती निर्मल धारा हैं। कोमल-कोमल कलियों ने भी, अपना रूप निखारा है।। -- प्रणय दिवस का भूत चढ़ा है, यौवन की अँगड़ाई में, छल-फरेब का चलन बढ़ा है, पूरब की पुरवाई में, रस के लोभी पागल मधुकर, घूम रहे आवारा हैं। कोमल-कोमल कलियों ने भी, अपना रूप निखारा है।। -- |
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शनिवार, 10 फ़रवरी 2024
गीत "कलियों ने भी अपना रूप निखारा है" (डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक')
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