-- शहनाइयों
के शोर में, भी घोर मातम है। हमारी
अंजुमन में आज तनहाई का आलम है। शहीदों
की मजारों पर कोई सज़दा करेगा क्यों? रकीबों
की कतारें है जहाँ खुशियाँ बहुत कम हैं।। -- देश
के सब नागरिक, जाँबाज
होने चाहिए, लक्ष्य
पाने के नये आगाज़ होने चाहिए, गैर
को अपना बना सकते हैं मीठे बोल ही- चाशनी
में तर-बतर, अल्फाज़ होने चाहिए, -- बात
कहने का अलग अन्दाज़ होना चाहिए, नगमगी-नग़मों
के संग में साज होना चाहिए, हर
किसी के साथ होते हैं जुड़े कुछ राज़ भी- दोस्ती
में तो सलामत आज होना चाहिए। -- गमजदा
हो कर जुल्म को खूब सहते हैं। थपेड़े
सहन करके भी सदा खामोश रहते हैं। नदी
के दो किनारों को कभी मिलना नहीं होता। मगर
वो चूमकर मौजों को दिल की बात कहते हैं।। -- "शास्त्री मयंक" |
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शनिवार, 17 फ़रवरी 2024
चार मुक्तक "सलामत आज होना चाहिए" (डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक')
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