-- बादल छाये गगन में, रिम-झिम पड़ें फुहार। मौसम के बदलाव से, चिन्तित है संसार।1। -- धूप-छाँव मैदान में, पर्वत पर हिमपात। दिन में ताप बढ़ा हुआ, लेकिन शीतल रात।2। -- पुरवा-पछुआ चल रही, सर्दी गयी सिधार। कुछ दिन में आ जायगा, होली का त्यौहार।3। -- सारा उपवन महकता, चहक रहा मधुमास। होली का होने लगा, जन-जन को आभास।4। -- अंगारा बनकर खिला, वन में वृक्ष पलाश। रंग, गुलाल-अबीर
की, आने लगी सुवास।5। -- अम्मा मठरी बेलती, सजनी तलती जाय। सजना इनको प्यार से, चटकारे ले खाय।6। -- गेहूँ पर हैं बालियाँ, कुन्दन सा है रूप। सरसों और मसूर को, सुखा रही है धूप।7। -- |
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शुक्रवार, 23 फ़रवरी 2024
दोहे "पर्वत पर हिमपात" (डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक')
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