-- ऊँची
कुरसी के लिए, सारे दावेदार। गठबन्धन
की नाव को, कौन करेगा पार।। ताल-मेल
कुछ भी नहीं, गर्दिश में है कार। छीना-झपटी
से नहीं, चलती है सरकार।। -- मिल-जुलकर
सबने चुनी, सबसे बढ़िया कार। लेकिन
चलने में हुई, कार बहुत लाचार।। -- बोनट
पर बैठे कई, भीतर कई सवार। बात
एकता की करें, सारे नम्बरदार।। -- तू-तू, मैं-मैं का लगा, जब
से मन में रोग। वानर
जैसी हरकतें, तब से करते लोग।। -- मुखियाओं
के हों जहाँ, मन में भरे विकार। राजनीति
के खेत की, कैसे भरे दरार।। -- अपने
दावे सब करें, खूब करें तकरार। अच्छे
नहीं भविष्य के, लगते हैं आसार।। -- |
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मंगलवार, 11 जून 2024
दोहे "सारे दावेदार" (डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक')
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